गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
गणतंत्र दिवस और उदास तिरंगा
तीन रंग का पहने बाना
फहरा रहा जो शान से !
आज क्यों कुछ ग़मगीन !
जिस गर्व से था फ़हरा ,
जो थे उद्देश्य ,
सभी अधूरे , ढ़ह रहे मंसूबे ,
लाखों की बलिवेदी पर
लहराया था तिरंगा !
क्या उन शहीदों का कर्ज चुका पाये?
सोचो हम जो श्वास ले रहे
स्वतंत्रता की वो हवा कहाँ से आई ,
कितनी माँओं ने सपूत खोये ,
कितनी बहनों ने भाई ।
आज स्वार्थ का बेपर्दा होता खेल,
भ्रष्टाचार,आंतक,दुराचार का दुष्कर मेल,
आज चूड़ियाँ छोड़ हाथ में
लेनी है तलवार,
कोई मर्म तक छेद न जाये,
पहले करने होंगें वार,
आजादी का मूल्य पहचान लें
तो ही खुलेंगे मन के तार ,
हर तरह के दुश्मनों का
जीना करदो दुश्वार,
आओ तिरंगे के नीचे हम
आज करें यह प्रण प्राण,
देश धर्म रक्षा हित
सब कुछ हो निस्त्राण ।
कुसुम कोठारी ।
गणतंत्र दिवस और उदास तिरंगा
तीन रंग का पहने बाना
फहरा रहा जो शान से !
आज क्यों कुछ ग़मगीन !
जिस गर्व से था फ़हरा ,
जो थे उद्देश्य ,
सभी अधूरे , ढ़ह रहे मंसूबे ,
लाखों की बलिवेदी पर
लहराया था तिरंगा !
क्या उन शहीदों का कर्ज चुका पाये?
सोचो हम जो श्वास ले रहे
स्वतंत्रता की वो हवा कहाँ से आई ,
कितनी माँओं ने सपूत खोये ,
कितनी बहनों ने भाई ।
आज स्वार्थ का बेपर्दा होता खेल,
भ्रष्टाचार,आंतक,दुराचार का दुष्कर मेल,
आज चूड़ियाँ छोड़ हाथ में
लेनी है तलवार,
कोई मर्म तक छेद न जाये,
पहले करने होंगें वार,
आजादी का मूल्य पहचान लें
तो ही खुलेंगे मन के तार ,
हर तरह के दुश्मनों का
जीना करदो दुश्वार,
आओ तिरंगे के नीचे हम
आज करें यह प्रण प्राण,
देश धर्म रक्षा हित
सब कुछ हो निस्त्राण ।
कुसुम कोठारी ।
क्या उन शहीदों का कर्ज चुका पाये?
ReplyDeleteसबसे बड़ा प्रश्न यही है कुसुम दी जो मन को खटकता है महामना मदनमोहन मालवीय जी की जयंती पर ब्राह्मण समाज द्वारा एक बड़ा कार्यक्रम का आयोजन हुआ। मुख्य वक्ता ने एक प्रश्न श्रोताओं के समक्ष रखा कि वे चमकौर युद्ध के संदर्भ में जानते हैं । सभा स्थल पर सन्नाटा छा गया। मुख्य वक्ता ने कहा जब हम अपने बलिदानी पुरुषों को नहीं याद रखेंगे तो समाज उन्नति की राह पर कैसे बढ़ेगा। जिस गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध के माध्यम से बलिदान का इतिहास रच दिया। वह किसके लिए हिंदुओं के लिए न ? 40 सिंखों ने जिसमें गुरु जी के दो पुत्र भी थें, उन्होंने अनेकों मुगल सैनिकों से युद्ध किया । दो पुत्रों सहित सभी शहीदों हुये। गुरु के अन्य दो मासूम पुत्र पकड़े गए और उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार न करने पर दीवार में चुनवा दिया गया। इस सूचना पर उनकी माँँ ने भी प्राण त्याग दिया। बलिदान का इतिहास ऐसा शायद ही कहीं हो , लेकिन गुरु गोविंद सिंह सनातन धर्म रक्षा के लिए अडिग रहे और हम हिन्दू उन्हें भूल गए , परंतु सिखों ने उन्हें याद रखा है और इसीलिए यह बहादुर कौम है।
और हम हैं कि चंद रुपयों के लिए, जाति मजहब के लिए, सत्ता के लिए अपने शहीदों को नीचा दिखा रहे हैं।
आपने इस रचना में मेरे मन की बात कह दी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... देशप्रेमके रंग से सजी सुन्दर रचना ।आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं कुसुम जी ।
ReplyDeleteबेहद सटीक
ReplyDeleteलेकिन तिरंगा गमगीन नहीं है। बल्कि समाज तिरंगे के लायक नहीं है।
कमाल की रचना
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-01-2020) को 'धुएँ के बादल' (चर्चा अंक- 3593) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सार्थक चिंतन
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति सखी
ReplyDeleteजो थे उद्देश्य ,
ReplyDeleteसभी अधूरे , ढ़ह रहे मंसूबे ,
लाखों की बलिवेदी पर
लहराया था तिरंगा !
क्या उन शहीदों का कर्ज चुका पाये
बेहद सुन्दर सार्थक सृजन
वाह!!!
आओ तिरंगे के नीचे हम
ReplyDeleteआज करें यह प्रण प्राण,
देश धर्म रक्षा हित
सब कुछ हो निस्त्राण
सुंदर संकल्प ,सादर नमन कुसुम जी