अभिशप्त न रहो
क्यों बांध रखा है स्वयं को
बांध के पानी की तरह
तुम उतंग पहाड़ों का सरगम हो
निर्झर बन निकल पड़ो
सुसुप्त स्रोतो से
बह निकलो नदी की
उन्मुक्त धार बनके
सागर सा अंतर मंथन लिये
प्रशांत हो बैठे क्यों हो
क्यो बेकल हो लहरों की तरह आजाद किनारों से खेलते नही
अरमानों को सजाओ
अभिशप्त न करो
अभिलाषाओं का दमन न करों
ये पल ये समय बीते हुवे क्षण
कभी भी नही आयेंगे लौट
जो संजोना हो अभी बस अभी
समय की निर्बाध धारा मे
निःसहाय से न बहो
तैर कर आंनद उठाओ
टूटे पत्ते नही कि हवा का झोंका
या जल तंरग बहा ले जाय तुम्हें
हवाओं के रुख पर हर कोई बहता है
विपरीत दिशा मे राह बनाओ
कुछ भी करो बस अभिशप्त न रहो।
युग का महा संगीत सुनो
मन का अह्लाद मुखरित करो
सिर्फ जीने के लिये नही जीयो
गरल नही जीवन अमृत पीयो।
कुसुम कोठरी।
क्यों बांध रखा है स्वयं को
बांध के पानी की तरह
तुम उतंग पहाड़ों का सरगम हो
निर्झर बन निकल पड़ो
सुसुप्त स्रोतो से
बह निकलो नदी की
उन्मुक्त धार बनके
सागर सा अंतर मंथन लिये
प्रशांत हो बैठे क्यों हो
क्यो बेकल हो लहरों की तरह आजाद किनारों से खेलते नही
अरमानों को सजाओ
अभिशप्त न करो
अभिलाषाओं का दमन न करों
ये पल ये समय बीते हुवे क्षण
कभी भी नही आयेंगे लौट
जो संजोना हो अभी बस अभी
समय की निर्बाध धारा मे
निःसहाय से न बहो
तैर कर आंनद उठाओ
टूटे पत्ते नही कि हवा का झोंका
या जल तंरग बहा ले जाय तुम्हें
हवाओं के रुख पर हर कोई बहता है
विपरीत दिशा मे राह बनाओ
कुछ भी करो बस अभिशप्त न रहो।
युग का महा संगीत सुनो
मन का अह्लाद मुखरित करो
सिर्फ जीने के लिये नही जीयो
गरल नही जीवन अमृत पीयो।
कुसुम कोठरी।
बहुत खूब
ReplyDeleteसादर आभार लोकेश जी।
Deleteवाहहह... वाहहह...👌👌👌👌 बेहद सुंदर सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण जीवन में खुशियों की आस जगाती रचना।
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय आपकी सराहाना सदा मन खुश कर देती है।
Deleteवाह दीदी जी बेहद सुंदर
ReplyDeleteनकारात्मक सोच के बंधन से मुक्ती दिला नव ऊर्जा का संचार करती सकारात्मक रचना
अद्भुत
सस्नेह आभार आंचल बहन आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया लेखन को सदा उत्साहित करती है।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसमय की निर्बाध धारा मे
ReplyDeleteनिःसहाय से न बहो
तैर कर आंनद उठाओ बहुत सुंदर रचना कुसुम जी
सस्नेह आभार अनुराधा जी आपकी प्रतिक्रिया लेखन को संबल देती सी मनभावन।
Deleteजीवन रुपी अमृत पीने का आह्वान करती सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteइस धरा के विपरीत बहने और अपना मार्ग बनाने मिएँ जो सुख है उसे प्राप्त करना जीवन है ... भावपूर्ण रचना ...
सादर आभार, आपकी विशिष्ट प्रतिक्रिया और सराहना रचना को विस्तार और आलंबन प्रदान करती सी ।
Deleteलेखनी के तेज से मन प्रेरित हुआ जाय
ReplyDeleteमैं भी कुछ टिप्पणी करूँ मुझको रही उकसाय
मुझको रही उकसाय मुझे कुछ समझ न आए
इस श्रेष्ठतम कृति हेतु कोई शब्द न भाए
मन कहता बारंबार बस ताली बजाऊँ
लेखन हो जाए धन्य जो ऐसी कृपा मैं भी पा जाऊँ।।
👏👏👏👏👏👏
आपके स्नेह के प्रतिदान मे मेरे पास कोई शब्द नही मीता अतिशयोक्ति भी मन लुभा रही है ढेर सारा प्यार।
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