चांद भी तपता है
तपता हुवा चांद उतर आया
विरहन की आंखों मे
चांदनी जला रही है तन- मन,
झरोखे मे उतर उतर
कैसी तपिश है ये
अंतर तक दहक गया
जेठ की तपती दोपहरी जैसे
सन्नाटे उतर आये मन मे
यादों के गर्म थपेड़े
मन झुलसाय
मुरझाये फूलों सा
रूप कुम्हलाय
नैनो का नीर गालों की
गर्मी मे समा कर सूख जाय
ज्यों धरा के तपते गात पर
तन्वंगी होता नदीयों का पानी
लताओं जैसे निस्तेज
घुंघराले उलझे केश
मलीन चीर की सिलवटें ऐसे जैसे
धरती का सूख कर सिकुड जाना
प्यासे पंछियों सा भटकता मन
उड़ता तृषा शांति की तलाश मे
हां चांद भी तपता है.....
कुसुम कोठारी ।
तपता हुवा चांद उतर आया
विरहन की आंखों मे
चांदनी जला रही है तन- मन,
झरोखे मे उतर उतर
कैसी तपिश है ये
अंतर तक दहक गया
जेठ की तपती दोपहरी जैसे
सन्नाटे उतर आये मन मे
यादों के गर्म थपेड़े
मन झुलसाय
मुरझाये फूलों सा
रूप कुम्हलाय
नैनो का नीर गालों की
गर्मी मे समा कर सूख जाय
ज्यों धरा के तपते गात पर
तन्वंगी होता नदीयों का पानी
लताओं जैसे निस्तेज
घुंघराले उलझे केश
मलीन चीर की सिलवटें ऐसे जैसे
धरती का सूख कर सिकुड जाना
प्यासे पंछियों सा भटकता मन
उड़ता तृषा शांति की तलाश मे
हां चांद भी तपता है.....
कुसुम कोठारी ।
यादों के गर्म थपेड़े
ReplyDeleteमन झुलसाय
मुरझाये फूलों सा
रूप कुम्हलाय
नैनो का नीर गालों की
गर्मी मे समा कर सूख जाय सुंदर रचना कुसुम जी
सुंदर मोहक ढंग आपकी सराहना का ,अतिशय आभार ।
Deleteवाह मीता
ReplyDeleteतप्त शब्द और झुलसते भाव
भरी दुपहरी सा लगा सखी आपका काव्य
बहुत सा स्नेह सिक्त आभार मीता ।
Deleteवाह दीदी जी लाजवाब रचना
ReplyDeleteआपकी कलम
कभी बरखा बौछार
कभी उगलता अंगार
सुंदर 👌
+anchal pandey कवि मन है जाने कब कौन सा भाव घट मे आ जाऐ ,पर सच ये है कि ये मैने हम कदम के "जेष्ठ की तपिस" पर लिखा था और पोस्ट अब कर रही हूं ।
ReplyDeleteये तो अच्छा है कि चांद तप रहा है रचना मे वर्णा मेघों की बरसती ऋतु मे सूरज जी की तपिश ....
सस्नेह आभार शानदार प्रतिक्रिया आपकी ।
वाह सखी सदा की तरह फिर एक शानदार रचना लिखी आप ने .... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी, आपका प्यार है जो इतना मान देते हो।
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