. दर्द यूंही दम तोड़ता
चाँद रोया रातभर
शबनमी अश्क बहाये
फूलों का दिल चाक हुवा
खिल न पाये खुल के
छुपाते रहे उन अश्को को
अपने पंखुरियों तले
धूप ने फिर साजिश रची
होले से उन को खुद मे समेटा
और अभिमान से इतराई
कह रही ज्यों यूं ही दर्द
दम तोडता है थककर
और छुप जाता न जाने
किन परदों तले होले होले।
कुसुम कोठारी।
चाँद रोया रातभर
शबनमी अश्क बहाये
फूलों का दिल चाक हुवा
खिल न पाये खुल के
छुपाते रहे उन अश्को को
अपने पंखुरियों तले
धूप ने फिर साजिश रची
होले से उन को खुद मे समेटा
और अभिमान से इतराई
कह रही ज्यों यूं ही दर्द
दम तोडता है थककर
और छुप जाता न जाने
किन परदों तले होले होले।
कुसुम कोठारी।
खूबसूरत शब्दों से सजी हुई रचना
ReplyDeleteआभार मित्र जी ढेर सा।
Deleteसादर आभार भाई अमित जी आप एक अच्छे रचनाकार ही नही अच्छे समीक्षक भी हैं आपने रचना पर जो प्रतिक्रिया दी है वो असाधारण हैं
ReplyDeleteबिंबों के माध्यम से मानवीय करण को आपने सहज व्याख्यात्मक ढंग से पेश किया सच कहूं तो ऐसी टिप्पणी से रचना और रचना कार का ही सिर्फ मान नही बढ़ता अपितु टिप्पणी कर्ता की प्रबुद्धता ज्यादा प्रशंसनिय हो जाती है।
पुनः अशेष आभार।
वाह 👌👌👌बहुत खूब लिखा सखी
ReplyDeleteदर्द में भी खूबसूरती बिखरने लगी
अंदाज बेहद शानदार है 👏👏👏
सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा कितना उत्साहित करती है मै बता नही सकती ढेर सा स्नेह।
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