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Thursday, 5 July 2018

आज सखी ....... ( मेघ मल्हार )

आज सखी मन खनक खनक जाये

मन की झांझर ऐसी झनकी
रुनझुन रुनझुन बोल रही है
छेडी सरगम मधुर रागिनी
मन के भेद भी खोल रही है।
आज सखी मन खनक खनक जाय।

प्रीत गगरिया छलक रही है
ज्यो  अमृत  उड़ेल रही  है
मन को घट  रीतो प्यासो है
बूंद - बूंद रस घोल  रही  है
आज सखी मन खनक खनक जाय ।

काली घटा घन घड़क रही है
बृष्टि टापुर टुपुर टपक रही है
हवा सुर सम्राट तानसेन ज्यों
राग मल्हार  दे  ठुमक रही है
आज सखी मन खनक खनक जाय ।
              कुसुम कोठारी।

13 comments:

  1. वाह वाह कुसुम जी मन तो आपकी रचना पढकर
    झूम झूम गया

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    1. सस्नेह आभार अभिलाषा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना और मुखरित हुई।

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  2. जी मित्र जी बहुत बहुत स्नेह आभार।
    शुभ दिवस ।

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  3. टापूर टुपुर शब्दों से खनके काव्य भाव भर कर प्याली
    एसो भाव भरो मेघन मैं बही लेखनी मतवाली !
    सजीव चित्रण बेहतरीन लेखन

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    1. बहुत सा आभार मीता,
      स्नेह सिक्त काव्यात्मक प्रतिक्रिया आपकी रचना को प्रवाह देती सी।

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  4. "काली घटा घन घड़क रही है
    बृष्टि टापुर टुपुर टपक रही है
    हवा सुर सम्राट तानसेन ज्यों
    राग मल्हार दे ठुमक रही है
    आज सखी मन खनक खनक जाय ।"

    वाह वाह दीदी जी क्या खूब लिखा आपने मन पढ़ते ही आनंद में भीग गया
    लाजवाब 👌
    सादर नमन सुप्रभात 🙇

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    1. सस्नेह आभार आंचल आपकी प्रतिक्रिया मन मोह गई और मुझे भी आनंद से भीगो गई।

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  5. बेहद खूबसूरत रचना कुसुम जी मन प्रसन्न हो गया

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    1. ढेर सा स्नेह आभार अनुराधा जी ।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/07/77.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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