श्याम घटा झुक आई
श्याम घटा झुक आई
चिरिप-चिरिप
खग बोले,
उषा ने घूघट पट
खोले,
देख किरण का रूप
सुनहरा
श्याम घटा झुक आई,
तभी भटकता
एक पवन
झकोरा आया ,
लगी चोट
नीरद पर
बादल ने जल बरसाया ,
झिमिर झिमिर
बदरी बरसी,
धरती सरसी,
भानु ने फिर मुँह छिपाया,
ऐसी आलौकिक सुबह देख
तन पुलका
मन हर्षाया
कुसुम कोठारी ।
प्रिय कुसुम बहन -- जब मैं ये रचना पढ़ रही हूँ तो मेरे कमरे के बाहर खिड़की से यही दृश्य देख रही हूँ | बस सूरज थोड़ा आगे चला गया होगा बादलों में , झिमिर झिमिर ये बरस जो रहे हैं !!!!!!!! मधुर सरस काव्य मन को आह्लादित करने वाला | शुभकामना |
ReplyDeleteरेणू बहन एक तो आपका आना ही इतना सुकून देता है उस पर आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया बस मन लुभा जाती है और ये मौसम भी कुछ मन मोहक ,बिंब और प्रतीकों को लेकर रचा मेरा छोटा सा प्रयास है ये रचना और आप प्रबुद्ध लोगों को पसंद आई लिखना सार्थक हुवा ।
Deleteपुनः आभार बहना ।
बेहतरीन प्रभाती
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीता।
Deleteशब्दों को ऐसे सजाया की क्या कहूं बहुत अच्छा लिखा ....लाजवाब।
ReplyDeleteसखी आपका स्नेह ही है कि मेरा लिखा सब कुछ आपको पसंद आता है और भरपूर सराहना मिलती है। आभार सखी।
Deleteअमित जी बहुत सा आभार।
ReplyDeleteआपको पसंद आई, और आपकी सराहना पा कर रचना सार्थक हुई ।