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Saturday, 21 July 2018

श्याम घटा झुक आई

श्याम घटा झुक आई

      चिरिप-चिरिप
        खग बोले,
    उषा ने घूघट पट
             खोले,
  देख किरण का रूप
          सुनहरा
 श्याम घटा झुक आई,
      तभी भटकता
         एक पवन
       झकोरा आया ,
          लगी चोट
          नीरद पर
 बादल ने जल बरसाया ,
        झिमिर झिमिर
          बदरी बरसी,
          धरती सरसी,
भानु ने फिर मुँह छिपाया,
ऐसी आलौकिक सुबह देख
            तन पुलका
            मन हर्षाया

          कुसुम कोठारी ।

7 comments:

  1. प्रिय कुसुम बहन -- जब मैं ये रचना पढ़ रही हूँ तो मेरे कमरे के बाहर खिड़की से यही दृश्य देख रही हूँ | बस सूरज थोड़ा आगे चला गया होगा बादलों में , झिमिर झिमिर ये बरस जो रहे हैं !!!!!!!! मधुर सरस काव्य मन को आह्लादित करने वाला | शुभकामना |

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    1. रेणू बहन एक तो आपका आना ही इतना सुकून देता है उस पर आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया बस मन लुभा जाती है और ये मौसम भी कुछ मन मोहक ,बिंब और प्रतीकों को लेकर रचा मेरा छोटा सा प्रयास है ये रचना और आप प्रबुद्ध लोगों को पसंद आई लिखना सार्थक हुवा ।
      पुनः आभार बहना ।

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  2. बेहतरीन प्रभाती

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    1. बहुत बहुत आभार मीता।

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  3. शब्दों को ऐसे सजाया की क्या कहूं बहुत अच्छा लिखा ....लाजवाब।

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    1. सखी आपका स्नेह ही है कि मेरा लिखा सब कुछ आपको पसंद आता है और भरपूर सराहना मिलती है। आभार सखी।

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  4. अमित जी बहुत सा आभार।
    आपको पसंद आई, और आपकी सराहना पा कर रचना सार्थक हुई ।

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