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Tuesday, 24 July 2018

इंसा है नसीब का पायेगा ही

इंसान है नसीब का पायेगा ही

मौत की शै पे हर एक फना होता है,
      जज्बातो की ठोकर मे क्यों
           फिर रुसवा होता हैं,
      इंसा है नसीब का पायेगा ही,
 बस इस  बात से क्यों अंजा होता है,
        ख्वाब देखो कुछ बुरा नही
   पर हर ख्वाब पुरा हो यही मत देखो
   सब की किस्मत एक नही होती
   एक ही गुलिस्ता के हर फूल का
          अंजाम अलग होता है
         एक कली सेहरे मे गूंथती
          एक मयत पर सजती है
         एक  फूल चढता श्रद्धा से
      दूजा बाजारों में रौंदा जाता है
         एक बने गमले की शोभा
        एक कचरे मे फैंका जाता है
        कुछ तो कुछ भी नही सहते
         पर डाली पर मुरझा जाते है
           बस जीने का एक बहाना
             ढूंढलो कोई अच्छा सा
            एक  ढूंढोगे लाख मिलेगे
             सप्तम सुर है सरगम मे।

                       कुसुम कोठारी।

8 comments:

  1. कर्म प्रधान भले ही जग में
    फिर भी किस्मत शेर
    उम्र गुजर जाये मेहनत में
    भाग्य जो कर दे देर

    बहुत अच्छी लगी रचना 👌👌👌

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    1. जी सखी सही कहा मेहनत कश दिन भर का जुगाड़ नही कर पाते और किस्मत वाले दोनो हाथ लुटाते।
      आपकी प्रतिक्रिया मन भाई।
      ढेर सा आभार सखी।

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  2. 👌👌👌👌अति सुन्दर भाव मीता

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  3. भाग्य और कर्म को बहुत बेहतरीन ढंग से व्याख्यायित किया है कुसुम जी। बहुत सुन्दर रचना ।

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    1. सादर आभार मीना जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना का मान बढा।

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  4. जीने का वक सहारा ज़रूर ढूँढना चाहिए नहि तो सूरों को देख कर जलन होती है ... हर किसी की क़िस्मत वक साई नहि होती है ...
    गहरी बात लिख दी रचना के माध्यम से ...

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    1. सादर आभार आदरणीय व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से लेखन को नई गति मिलती है ।

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