झूलन चित चढ़ी मोरे
ओढ के धानी चुनर प्रीत की
संग सांवलिया के झुलन जाऊँ
पेंग बढ़ाऊं ,
पायल बोले रुनझुन रुनझुन
मन के संदल महके
पपीहरा गीत सुनाऐ
मन नव राग सजाऐ ,
धरा " हरी "रंग रंगी
धीमे धीमे पवन झकोरे
मन मे हरख जगावे
आज राधे गोविंद की
झुलन चित चढ़ी चढ़ी जाऐ
आवो सखी राधा श्याम झुलायें ।
कुसुम कोठारी ।
बहुत सुंदर रचना 👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार अनुराधा जी ।
Delete👏👏👏👏
ReplyDeleteबहुत खूब मीता अद्भुत काव्य दृश्य मन प्रफुल्लित हो गया
धानी चुनर उड़े रही फर फर
राधे जी सकुचावे
नटखट कान्हा पैंग बढ़ाये
राधे जी घबरावे !
वाह वाह बहुत खूब रचना को प्रतिमान देती काव्यात्मक प्रतिपंक्तियां।
Deleteस्नेहिल आभार मीता ।
खूबसूरत शब्दों से सजी लाजवाब रचना।
ReplyDeleteस्नेह आभार सखी नीतू जी ।
Deleteसस्नेह आभार। मै जरूर हाजिर होऊंगी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर,सावन के रंग में भीगी भीगी रचना
ReplyDeleteबहुत सा आभार मीना जी सस्नेह ।
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