लम्हा लम्हा बिखरती सिमटती जिंदगी
क्या है जिंदगी का फलसफा
कभी नर्म परदों से झांकती
खुशी सी जिंदगी
कभी तुषार कण सी
फिसलती सी जिंदगी
कभी ख्वाबों के निशां
ढूंढती जिंदगी
कभी खुद ख्वाब
बनती सी जिंदगी
आज हंसाती
कल रूलाती जिंदगी
लम्हा लम्हा बिखरती
सिमटती जिंदगी
कभी चंद सांसों की
दास्तान है जिंदगी
और कभी लम्बी
विराने सी फैली जिंदगी
हर बार निकलता
एक लफ्ज है लब से
क्या है जिंदगी ?
क्या यही है जिंदगी ?
कुसुम कोठारी ।
क्या है जिंदगी का फलसफा
कभी नर्म परदों से झांकती
खुशी सी जिंदगी
कभी तुषार कण सी
फिसलती सी जिंदगी
कभी ख्वाबों के निशां
ढूंढती जिंदगी
कभी खुद ख्वाब
बनती सी जिंदगी
आज हंसाती
कल रूलाती जिंदगी
लम्हा लम्हा बिखरती
सिमटती जिंदगी
कभी चंद सांसों की
दास्तान है जिंदगी
और कभी लम्बी
विराने सी फैली जिंदगी
हर बार निकलता
एक लफ्ज है लब से
क्या है जिंदगी ?
क्या यही है जिंदगी ?
कुसुम कोठारी ।
कभी खुद ख्वाब
ReplyDeleteबनती सी जिंदगी
आज हंसाती
कल रूलाती जिंदगी
लम्हा लम्हा बिखरती
सिमटती जिंदगी बेहतरीन रचना सखी
सस्नेह आभार सखी ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteज़िंदगी को समझने और समझाने का अंदाज़ बहुत अच्छा लगा
ज़िंदगी की तलाश में निकले थे
ज़िंदगी ही खो गई
जाने ये राज़ भी
कबतक राज़ ही रह जायेगा
वाह बहुत सुन्दर प्रतिपंक्तियां सखी …
Deleteजाने ये राज भी कब तक राज ही रह जायेगा।
वाह मीता वाह ...जिंदगी का फलसफा विविध भांति समझाया
ReplyDeleteकभी सहजता कभी कठिनता दोनों भाव दर्शाया
स्नेह आभार मीता सुंदर सकारात्मक प्रतिक्रिया का।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ६ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार मै अवश्य आऊंगी।
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