वर्षा तो अभी अल्हड़ है
वर्षा तो अभी अल्हड़ है
वर्षा तो अभी अल्हड है
कोई न जाने कैसी राह चली
मस्त,मदंग,मतंग मतवाली
अपनी चाल चली
कोई देखे हसरत से
फिर भी नही रुकी
कहीं सरसा हो सरसी
कहीं प्रचंड बरसी
कभी मेघ औ पवन के
षड्यंत्रों मे उलझी
कभी स्वतंत्र निज मौज में
संग समीर रची ।
वर्षा अभी.......
कुसुम कोठारी ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 08 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय, मै अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteबेहतरीन लेखन
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीता।
Deleteबहुत सुंदर रचना दी:)👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय श्वेता ।
Deleteमस्त,मदंग,मतंग मतवाली वाह बहुत खूब लिखा सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अनुराधा जी।
Deleteबहुत खूब लिखा.... सुंदर रचना 👌👌👌
ReplyDeleteआभार सखी।
Deleteनिमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteजी जरूर ।
Deleteवाह दीदी जी बहुत सुंदर
ReplyDeleteवर्षा का अल्हडपन मन को छू गया
वाह 👌
सादर नमन शुभ दिवस
आभार आंचल आपकी मनभावन प्रतिक्रिया मव भावन।
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