Followers

Saturday, 14 July 2018

चाँद बादल की लुक्का छिपी

"चाँद बादल की लुका छिपी"

आज चाँद के नूर पर देखो 
फिर बदरी सी छाई है ,
मौसम है कुछ  महका-बहका
चंद्रिका  घूंघट ओट कर आई है ,
क्या पीया मिलन को जाना है
जो यूं सिमटी सकुचाई है ,
अँखियां ऐसे झुकी कि 
जैसे पहली मिलन रुत आई है ,
कभी छुपाये खुद को 
बादल के मृगछौनो में ,
कभी झांकती हटा-घटा
घूंघट के कोनो से ,
निशा , चूनर तारों वाली
झिलमिल-झलकाती है ,
और कभी नीला-नीला 
अपना आंचल लहराती है ,
आज बादलों ने देखो 
चाँद से खेली छुपम छुपाई है ।

          कुसुम कोठारी ।


8 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना कुसुम जी

    ReplyDelete
  2. वाह रूहानियत से लबरेज रचना मीता ..कोमल मन भाव छेड़ गई !
    बदली जो चाँद पर छाई सरस भाव मन घोल गई

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह शानदार प्रतिक्रिया मीता रचना मे रौनक भरती और लेखनी मे उत्साह भर्ती सी।
      स्नेह आभार

      Delete
  3. वाह!!बहुत सुंदर ।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर ...
    मस्त गीत मिलन की महक ख़ुद को छिपाए ... मन मयूर को
    महकाती रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आदरणीय। सक्रिय प्रतिक्रिया और सुन्दर प्रतिपंक्तियां

      Delete