. चांद का सम्मोहन
प्राचीर से उतर चंचल उर्मियां
आंगन मे अठखेलियाँ कर रही थी
और मै बैठी कृत्रिम प्रकाश मे
चाँद पर कविता लिख रही थी
मन मे प्रतिकार उठ रहा था
उठ के वातायन खोल दूं
शायद मन कुछ प्रशांत हो
आहा!!
चांद अपनी सुषमा के साथ
मेरी ही खिडकी पर बैठा
थाप दे रहा था धीमी मद्धरिम
विस्मित सी जाने किस सम्मोहन मे
बंधी मैं छत तक आ गई
इतनी उजली कोरी वसना
प्रकृति, स्तभित से नयन
चांदनी छत से आंगन तक
पुलक पुलक क्रीड़ा कर रही थी
गमलों के अलसाऐ ये फूलों मे
नई ज्योत्सना भर रही थी
मन लुभाता समीर का माधुर्य
एक धीमी स्वर लहरी लिये
पादप पल्लवों का स्पंदन
दूर धोरी गैया का नन्हा
चंद्र रश्मियों से होड़ करता
कौन ज्यादा कोमल
कौन स्फटिक सा धोरा
चांदनी लजाई बोली मै हारी
बोली मन करता तुम से कुछ
उजाला चुरा लूं!!
निशा धीरे धीरे ढलने लगी
चांदनी चांद मे सिमटने लगी
चांद ने अपना तिलिस्म उठाया
और प्रस्थान किया
प्राची से एक अद्भुत रूपसी
सुर बाला सुनहरी आंचल
फहराती मंदाकिनी मे उतरी
आज चांद और चांदनी से
साक्षात्कार हुवा मेरा
मेरे मनोभावों का
प्रादुर्भाव हुवा, बिन कल्पना।
कुसुम कोठारी।
प्राचीर से उतर चंचल उर्मियां
आंगन मे अठखेलियाँ कर रही थी
और मै बैठी कृत्रिम प्रकाश मे
चाँद पर कविता लिख रही थी
मन मे प्रतिकार उठ रहा था
उठ के वातायन खोल दूं
शायद मन कुछ प्रशांत हो
आहा!!
चांद अपनी सुषमा के साथ
मेरी ही खिडकी पर बैठा
थाप दे रहा था धीमी मद्धरिम
विस्मित सी जाने किस सम्मोहन मे
बंधी मैं छत तक आ गई
इतनी उजली कोरी वसना
प्रकृति, स्तभित से नयन
चांदनी छत से आंगन तक
पुलक पुलक क्रीड़ा कर रही थी
गमलों के अलसाऐ ये फूलों मे
नई ज्योत्सना भर रही थी
मन लुभाता समीर का माधुर्य
एक धीमी स्वर लहरी लिये
पादप पल्लवों का स्पंदन
दूर धोरी गैया का नन्हा
चंद्र रश्मियों से होड़ करता
कौन ज्यादा कोमल
कौन स्फटिक सा धोरा
चांदनी लजाई बोली मै हारी
बोली मन करता तुम से कुछ
उजाला चुरा लूं!!
निशा धीरे धीरे ढलने लगी
चांदनी चांद मे सिमटने लगी
चांद ने अपना तिलिस्म उठाया
और प्रस्थान किया
प्राची से एक अद्भुत रूपसी
सुर बाला सुनहरी आंचल
फहराती मंदाकिनी मे उतरी
आज चांद और चांदनी से
साक्षात्कार हुवा मेरा
मेरे मनोभावों का
प्रादुर्भाव हुवा, बिन कल्पना।
कुसुम कोठारी।
बेहतरीन रचना कुसुम जी 👌👌👌👌
ReplyDeleteमन लुभाता समीर का माधुर्य
एक धीमी स्वर लहरी लिये
पादप पल्लवों का स्पंदन
अशेष आभार मित्र जी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से मन आह्लादित हो जाता है।
ReplyDeleteआप की रचना वाकई मन को छू लेने वाली है। सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी सराहना के लिये आभार नही बस स्नेह और स्नेह
Deleteअप्रतिम मीता अप्रतिम .....शब्दों और भावों का समवेद स्वर मन को आल्हादित कर गया द्रश्य मानो सजीव हो उठा ...मीता
ReplyDeleteआभार शब्द छोटा होगा अशेष स्नेह इस हृदय से दी गई मनभावन प्रतिक्रिया के लिये।
Deleteसस्नेह मीता
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार ।मै उपस्थित रहूंगी।
Deleteबहुत बहुत आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धन करती सी ।
ReplyDeleteहैंड से साक्षात्कार रोज़ हर किसी का होता है और सबका अनुभव अलग अलग होता है ...
ReplyDeleteआपके अनुभव की ताज़गी महक रही है ... इन मासूम राशियों के खेल को बख़ूबी लिखा है ...
सादर आभार प्रतिक्रिया से प्रतीकों को नये आयाम मिले.…
ReplyDeleteमासूम राशियां बहुत खूब!!
विस्मयकारी लेखन, अदभुद, अति सुंदर।
ReplyDeleteजी सराहना के लिये सादर आभार पुरुषोत्तम जी ।
Deleteबहुत सुन्दर कुसुम कोठारी जी. विश्वमोहन जी की कविता के बाद अब आपकी कविता ने भी पन्त जी की कविता - 'नौका विहार' -'शांत-स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्जवल, अपलक अनंत-नीरव भूतल, सैकत शैया पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म-विरल' की याद दिला दी.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय जी आपकी प्रतिक्रिया से मै स्तब्ध हूं ये मेरे लिये अविस्मरणीय रहेगा, पंत जी मेरे प्रेरणा स्रोत है और अगर क्षणांश भी कही मेरी रचना उनकी स्मृति करवाती है तो मेरे लिये उससे बड़ा कोई पुरस्कार नही मै अभिभूत हूं और पुनः आभार व्यक्त करती हूं सदा अनुग्रह बनाये रखें।
Deleteऔर विश्व मोहन जी के बारे मे कुछ लिख सकूं ये मेरी कलम मे ताव नही वो एक उच्च कोटि के रचनाकार हैं और हर विधा पर उनका पूर्ण अधिकार है वे शब्दों के जादूगर हैं,अद्भुत शैली और विस्मयकारी अवगूंठन उनकी काव्य प्रतिभा अतुल्य है ।
वाहः लाजवाब रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार उत्साह बढाती प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteइतनी सुंदर काव्य, भाव और शब्दों का ताना बान कि बार बार पढने को विवश..सुंदर, बढिया, अच्छा जैसे शब्दों का तो कोई मायने ही नहीं।
ReplyDeleteउत्तम।
सस्नेह आभार पम्मी जी आपकी उत्साह वर्धक सराहना पा मन खुश हुवा ।
Deleteसादर आभार।
ReplyDeleteप्रिय कुसुम बहन आदरनीय गोपेश जी ने सच लिखा | छायावादी कवियों की रचनाएँ याद दिलाते हैं आपकी अधकतर रचनाएँ और चाँद के सम्मोहन के तो क्या कहने !!!! एक एक शब्द मनमोहक और सरस है | माँ सरस्वती आपकी लेखनी को प्रवाह दे | ये कभी ना थमे | इस मंच पर अमित निश्चल भी बहुत कुछ एसा ही लिखते हैं जो बहुत प्रभावित करता है | आपको हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteप्रिय रेनू बहन आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया के लिये आभार शब्द बहुत ही कम होगा सिर्फ स्नेह और ढेर सा स्नेह,सच कहूं तो आप सब ने जो मान दिया है वो मनभावन है पर खुद को संकोच मे अनुभव करती हूं, उन महान कवियों का सूई की नोक बराबर भी लिख पाऊंगी तो खुद को धन्य समझूंगी। यह सच है कि मेरी पहली पसंद छायावादी कवि ही हैं विशेष रूप से पंत जी और प्रसाद जी। एक बार फिर से स्नेह बहन।
Deleteचांदनी लजाई बोली मै हारी
ReplyDeleteबोली मन करता तुम से कुछ
उजाला चुरा लूं!!
निशा धीरे धीरे ढलने लगी
चांदनी चांद मे सिमटने लगी......'कुसुम' सी कोमल पदावली में चाँद के सम्मोहन का मनमोहक चित्रांकन! विस्मित हूँ आपकी जादुई काव्य-कुची से खचित इस विलक्षण छायांकन पर!!! माँ वीणावादिनी आपकी काव्य वीणा को अगणित सुर ताल की लय एवं लावण्य से लबालब रखें! हृदयतल से कामना!! बधाई और आभार!!!
आदरणीय विश्व मोहन जी आपकी विस्तृत और अप्रतिम सराहना एक रचना कार के लिये पुरस्कार से कम नही, आपकी अविस्मरणीय प्रतिक्रिया सदा मुझे अच्छे लेखन के लिये प्रेरित करती रहेगी, पात्रता से बहुत ज्यादा पा रही हूं, और साथ ही मां वागेश्वरी के वरद हस्त की शुभकामनायें आप जैसे सुधि रचनाकार से पा रही हूं, आपकी सराहना हेतू लिखी प्रतिपंक्तियां बहुत सुंदर और उत्साह वर्धक है।
Deleteकाव्य परिमार्जन के लिये एक समीक्षक की भांति मार्ग दर्शन का अनुरोध है।
आपकी प्रतिक्रिया के बदले आभार शब्द बस औपचारिक सा है फिर भी हृदय तल से सादर आभार।
सुंदरतम कृति।
ReplyDeleteसादर आभार ।
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