मदमाती बूंदों का श्रृंगार मेघ मल्हार
घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा
मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा
सरसती धरा का प्यार गा रहा
खिलते फूलों का अनुराग गा
कलियों का सोलह सिंगार गा रहा
गूंचा गूंचा मकती नज्मे गा रहा
रुत का खिलता अरमान गा रहा
पपीहरा मीठी सी राग गा रहा
मन मोर ठुमक ठुमक नाच गा रहा
नदियों का कल कल राग गा रहा
मदमाता सावन फूहार गा रहा
भीना सरस रस काव्य गा रहा।।
कुसुम कोठारी।
घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा
मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा
सरसती धरा का प्यार गा रहा
खिलते फूलों का अनुराग गा
कलियों का सोलह सिंगार गा रहा
गूंचा गूंचा मकती नज्मे गा रहा
रुत का खिलता अरमान गा रहा
पपीहरा मीठी सी राग गा रहा
मन मोर ठुमक ठुमक नाच गा रहा
नदियों का कल कल राग गा रहा
मदमाता सावन फूहार गा रहा
भीना सरस रस काव्य गा रहा।।
कुसुम कोठारी।
खिलते फूलों का अनुराग गा
ReplyDeleteकलियों का सोलह श्रृंगार गा रहा
वाह बहुत खूब
आभार शुक्रिया अनुराधा जी ।
Delete👌👌👌वाह मीता वाह
ReplyDeleteअद्भुत गायन सा लेखन है
अद्भुत राग मल्हार
अद्भुत छन्न छनक छनक कर
नाचन लागी बरखा बहार !
सुंदर प्रतिपंक्तियां मीता रचना को संबल देती, सस्नेह आभार ।
Deleteवाह दीदी जी बेहद खूब्सुरत मनमोहक मल्हार
ReplyDeleteकल थे मेघा
है आज सूरज की ताप
तपती भूमि उगले है आग
पर पढ कर जीजी तेरा मल्हार
मन मगन गा रहा नये राग
सादर नमन शुभ दिवस दीदी जी
प्रिय आंचल,
Deleteआपके वहां अभी सूरज दादा का प्रकोप जारी है और हमारे यहां बरखा भारी है।
सचमुच मेघ मल्हार गा रहे हैं
और सरसती हवाओं का सरगम भी मनभावन हैं
बहुत सा स्नेह आभार ।
जी आभार अमित जी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया
ReplyDeleteशब्दों को ख़ूबसूरती से सजाकर क्या खूब लिखा आप ने। लाजवाब !!!
ReplyDeleteआभार सखी आभार।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी सादर आभार ।
Deleteमै उपस्थित रहूंगी।