Monday, 2 July 2018

सरसती बूंदों का श्रृंगार मेघ मल्हार

मदमाती बूंदों का श्रृंगार मेघ मल्हार

   घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा
 मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा
  सरसती धरा का प्यार गा रहा
  खिलते फूलों का अनुराग गा
कलियों का सोलह सिंगार गा रहा
  गूंचा गूंचा मकती नज्मे गा रहा
 रुत का खिलता अरमान गा रहा
 पपीहरा  मीठी  सी राग गा  रहा
मन मोर ठुमक ठुमक नाच गा रहा
 नदियों का कल कल राग गा रहा
  मदमाता  सावन  फूहार गा रहा
  भीना सरस रस काव्य गा रहा।।

           कुसुम कोठारी।

11 comments:

  1. खिलते फूलों का अनुराग गा
    कलियों का सोलह श्रृंगार गा रहा
    वाह बहुत खूब

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    1. आभार शुक्रिया अनुराधा जी ।

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  2. 👌👌👌वाह मीता वाह
    अद्भुत गायन सा लेखन है
    अद्भुत राग मल्हार
    अद्भुत छन्न छनक छनक कर
    नाचन लागी बरखा बहार !

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    1. सुंदर प्रतिपंक्तियां मीता रचना को संबल देती, सस्नेह आभार ।

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  3. वाह दीदी जी बेहद खूब्सुरत मनमोहक मल्हार
    कल थे मेघा
    है आज सूरज की ताप
    तपती भूमि उगले है आग
    पर पढ कर जीजी तेरा मल्हार
    मन मगन गा रहा नये राग

    सादर नमन शुभ दिवस दीदी जी

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    1. प्रिय आंचल,
      आपके वहां अभी सूरज दादा का प्रकोप जारी है और हमारे यहां बरखा भारी है।
      सचमुच मेघ मल्हार गा रहे हैं
      और सरसती हवाओं का सरगम भी मनभावन हैं
      बहुत सा स्नेह आभार ।

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  4. जी आभार अमित जी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया

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  5. शब्दों को ख़ूबसूरती से सजाकर क्या खूब लिखा आप ने। लाजवाब !!!

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी सादर आभार ।
      मै उपस्थित रहूंगी।

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