कोई धूल से उठा शीश पर धर लिया जाता
कोई टिमटिमाता तारा आसमां भी नही पाता।
इस दुनिया के दस्तूर निराले हैं भाई
यहां गर चल पडी तो नाम है गाड़ी।
हां मे हां मिलाते हैं यहां जी हजूरी मे
कहां पेट भर पाता सिर्फ मजूरी मे ।
चले तो सिक्का भी चल पड़ता खोटा
नही तो रूपये का भाग भी खोटा ।
चमचागिरी से पैसा बन जाता मोटा
ईमान के घर दाल रोटी का टोटा ।
गरीब पहने तो कपड़ा टोटे मे छोटा
फैशन ने पहना देखभाल कर ही छोटा।
कुसुम कोठारी।
कोई टिमटिमाता तारा आसमां भी नही पाता।
इस दुनिया के दस्तूर निराले हैं भाई
यहां गर चल पडी तो नाम है गाड़ी।
हां मे हां मिलाते हैं यहां जी हजूरी मे
कहां पेट भर पाता सिर्फ मजूरी मे ।
चले तो सिक्का भी चल पड़ता खोटा
नही तो रूपये का भाग भी खोटा ।
चमचागिरी से पैसा बन जाता मोटा
ईमान के घर दाल रोटी का टोटा ।
गरीब पहने तो कपड़ा टोटे मे छोटा
फैशन ने पहना देखभाल कर ही छोटा।
कुसुम कोठारी।
वाह!!! सखी सत्य लिखा आप ने।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना ...आज के दौर का सटीक चित्रण।
सखी आभार आपकी सहमति और सराहना रचना को आधार देती सी सुखद।
Deleteशुभ दिवस।
बहुत ही सटीक चित्रण किया है कुसुम जी
ReplyDeleteगरीब पहने तो कपड़ा टोटे मे छोटा
फैशन ने पहना देखभाल कर ही छोटा। सुंदर रचना 👌
बहुत सा आभार अनुराधा जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी अवश्य, सादर आभार ।
Deleteसादर आभार
ReplyDeleteतीक्ष्ण व्यंग...
ReplyDeleteसुंदर रचना।
बहुत सुन्दर सखी
ReplyDeleteसादर
इस नए ज़माने का चित्रण करती बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबात तो बिल्कुल सही है...
जो चल पड़ी तो गाड़ी
वरना मोल देता बस कबाड़ी
सादर नमन आदरणीय दीदी शुभ मध्यांतर