Tuesday, 17 July 2018

चल पड़ी तो नाम गाड़ी

कोई धूल से उठा शीश पर धर लिया जाता
कोई टिमटिमाता तारा आसमां भी नही पाता।

इस दुनिया के दस्तूर निराले हैं भाई
यहां गर चल पडी तो नाम है गाड़ी।

हां मे हां मिलाते हैं यहां जी हजूरी मे
कहां पेट भर पाता सिर्फ मजूरी मे ।

चले तो  सिक्का भी चल पड़ता खोटा
नही तो रूपये का भाग भी खोटा ।

चमचागिरी से पैसा बन जाता मोटा
ईमान के घर दाल रोटी का टोटा ।

गरीब पहने तो कपड़ा टोटे मे छोटा
फैशन ने पहना देखभाल कर ही छोटा।
             
                  कुसुम कोठारी।

10 comments:

  1. वाह!!! सखी सत्य लिखा आप ने।
    बहुत ही शानदार रचना ...आज के दौर का सटीक चित्रण।

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    1. सखी आभार आपकी सहमति और सराहना रचना को आधार देती सी सुखद।
      शुभ दिवस।

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  2. बहुत ही सटीक चित्रण किया है कुसुम जी
    गरीब पहने तो कपड़ा टोटे मे छोटा
    फैशन ने पहना देखभाल कर ही छोटा। सुंदर रचना 👌

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    1. बहुत सा आभार अनुराधा जी ।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी अवश्य, सादर आभार ।

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  4. तीक्ष्ण व्यंग...
    सुंदर रचना।

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  5. बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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  6. इस नए ज़माने का चित्रण करती बेहद खूबसूरत रचना
    बात तो बिल्कुल सही है...
    जो चल पड़ी तो गाड़ी
    वरना मोल देता बस कबाड़ी

    सादर नमन आदरणीय दीदी शुभ मध्यांतर

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