Wednesday, 18 July 2018

झूलन चित चढ़ी मोरे

झूलन चित चढ़ी मोरे

ओढ के धानी चुनर प्रीत की
संग सांवलिया के झुलन जाऊँ
पेंग बढ़ाऊं ,
पायल बोले रुनझुन रुनझुन
मन के संदल महके
पपीहरा गीत सुनाऐ
मन नव राग सजाऐ ,
धरा " हरी "रंग रंगी
धीमे धीमे पवन झकोरे
मन मे हरख जगावे
आज राधे गोविंद की
झुलन चित चढ़ी चढ़ी जाऐ
आवो सखी राधा श्याम झुलायें ।

           कुसुम कोठारी ।



9 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना 👌👌

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    1. सस्नेह आभार अनुराधा जी ।

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  2. 👏👏👏👏
    बहुत खूब मीता अद्भुत काव्य दृश्य मन प्रफुल्लित हो गया
    धानी चुनर उड़े रही फर फर
    राधे जी सकुचावे
    नटखट कान्हा पैंग बढ़ाये
    राधे जी घबरावे !

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    1. वाह वाह बहुत खूब रचना को प्रतिमान देती काव्यात्मक प्रतिपंक्तियां।
      स्नेहिल आभार मीता ।

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  3. खूबसूरत शब्दों से सजी लाजवाब रचना।

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    1. स्नेह आभार सखी नीतू जी ।

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  4. सस्नेह आभार। मै जरूर हाजिर होऊंगी।

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  5. बहुत सुंदर,सावन के रंग में भीगी भीगी रचना

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    1. बहुत सा आभार मीना जी सस्नेह ।

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