. किस्मत क्या है!!
कर्मो द्वारा अर्जित लब्ध और प्रारब्ध ही किस्मत है...
पूर्व कृत कर्मो से
जो संजोया है
वो ही विधना का खेल है
जो कर्म रूप संजो के
आया है रे प्राणी
उस का फल तो
अवश्य पायेगा
हंस हंस बाधें कर्म
अब रो रो उन्हें
छुडाये जा
भाग्य, नसीब,
किस्मत क्या है ?
बस कर्मो से संचित
नीधी विपाक
बस सुकृति से
कुछ कर्म गति मोड़
और धैर्य संयम से
सब झेल
साथ ही कर
कृत्य अच्छे
और कर नव भाग्य
का निर्माण ।
कुसुम कोठारी।
कर्मो द्वारा अर्जित लब्ध और प्रारब्ध ही किस्मत है...
पूर्व कृत कर्मो से
जो संजोया है
वो ही विधना का खेल है
जो कर्म रूप संजो के
आया है रे प्राणी
उस का फल तो
अवश्य पायेगा
हंस हंस बाधें कर्म
अब रो रो उन्हें
छुडाये जा
भाग्य, नसीब,
किस्मत क्या है ?
बस कर्मो से संचित
नीधी विपाक
बस सुकृति से
कुछ कर्म गति मोड़
और धैर्य संयम से
सब झेल
साथ ही कर
कृत्य अच्छे
और कर नव भाग्य
का निर्माण ।
कुसुम कोठारी।
नमन आप की लेखनी को
ReplyDeleteएक सार्थक रचना .....लाजवाब !!!
आपके अतुल्य स्नेह का आभार सखी ।
Deleteसुंदर रचना कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत सा आभार ।
Deleteआध्यत्मिक ज्ञान ....नमन मीता
ReplyDeleteतकदीर और तदबीर जब दोनों का होगा मेल
कर्म गति तब गति पकड़ेगी यही है किस्मत का खेल
वाह सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया ।
Deleteसस्नेह आभार मीता ।
सत्य है। सुन्दर।
ReplyDeleteसादर आभार
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार ।
Deleteमेरी उपस्थिति निश्चित है।