आ जाओ तुम कविता बन।
जीवन आंगन में रुनझुन रुनझुन
पायल बन छनको बस तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
सूनी सांझ, खग लोटे नीड़ों में
कलरव बन छा जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
संतप्त हृदय एकाकी मन उपवन
सोम सुधा रस बन बरसो तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
शब्द भाव अहसास बहुत है
अर्थ बन सज जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
निश्छल मन के कोरे सर सलिल में
कमलिनी बन खिल जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
कुसुम कोठारी ।
जीवन आंगन में रुनझुन रुनझुन
पायल बन छनको बस तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
सूनी सांझ, खग लोटे नीड़ों में
कलरव बन छा जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
संतप्त हृदय एकाकी मन उपवन
सोम सुधा रस बन बरसो तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
शब्द भाव अहसास बहुत है
अर्थ बन सज जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
निश्छल मन के कोरे सर सलिल में
कमलिनी बन खिल जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
कुसुम कोठारी ।
वाह बहुत सुंदर रचना कुसुम जी
ReplyDeleteआभार प्रिय सखी ।
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीता ।
Deleteबेहद उम्दा भाव।
ReplyDeleteस्नेह आभार सखी, आपको भाई रचना ।
Deleteप्रिय कुसुम बहन -- बहुत ही मीठी सी और प्यारी मनमोहक रचना से मन को आह्लादित क्र दिया आपने |सुमधुर कोमल शब्दावली मन को माधुर्य में सराबोर कर रही है |
ReplyDeleteशब्द भाव अहसास बहुत है
अर्थ बन सज जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।
निश्छल मन के कोरे सर सलिल में
कमलिनी बन खिल जाओ तुम!!!!!
वाह और सिर्फ वाह बहना !!!!!!!!
सच कहूं रेणू बहन ये कविता लिखने के बाद मुझे भी निकी सी भा गई ,और आपकी प्रतिक्रिया और प्रतिपंक्तियां सच स्नेह से भर गई लगा जैसे कविता सच आ गई ।(आ जाओ तुम कविता बन)।
Deleteसस्नेह आभार बहन ।
ओह कुसुम बहन आपका स्नेह अनमोल है |
Deleteसस्नेह रेनू बहन ।
Deleteजी सादर आभार, रचना को कोमलता से उठा कर चला दिया आपने ।
ReplyDeleteमनभावन प्रतिक्रिया।