बैरी सावन
सिकुड़े से बैठे रहे डरे डरे सहमे से
कनस्तर प्याले पारात गीत गाते रहे ।
"बैरी सावन "बरसता रहा रात भर।
बैरी नदिया
किनारे पे बैठ इंतजार किया किये
शाम ढलने तक न आया परदेशी
"बैरी नदिया" उफन उफन बहती रही।
बैरी बेरोजगारी
खाली था पेट एक भी दाना न गया
पानी पीकर कब तक गुजारा होगा
"बैरी भूख!! कल नया काम खोजना होगा।
कुसुम कोठारी।
सिकुड़े से बैठे रहे डरे डरे सहमे से
कनस्तर प्याले पारात गीत गाते रहे ।
"बैरी सावन "बरसता रहा रात भर।
बैरी नदिया
किनारे पे बैठ इंतजार किया किये
शाम ढलने तक न आया परदेशी
"बैरी नदिया" उफन उफन बहती रही।
बैरी बेरोजगारी
खाली था पेट एक भी दाना न गया
पानी पीकर कब तक गुजारा होगा
"बैरी भूख!! कल नया काम खोजना होगा।
कुसुम कोठारी।
बहुत ख़ूब ,बैरी मन ,
ReplyDeleteसिकुड़े से बैठे रहे डरे -डरे सहमे से
कन्सतर प्याले पारात गीत गाते रहे .......
सादर आभार सखी जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना 🙏
ReplyDeleteसुंदर त्रिवेणी संगम छोटी छोटी पंक्तियों में बहुत गहरे भाव छुपे बेहतरीन रचना 👌👌👌👌
ReplyDeleteजी सखी पहली बार कोशिश की है,गुलजार साहब काफी लिखते हैं इस विधा में, स्नेह आभार सखी ।
Deleteबहुत खूब लिखा सखी 👌👌👌
ReplyDeleteदिल पर दस्तक देती रचना 🙏🙏🙏
सस्नेह आभार सखी आपको पसंद आई मन खुश हुवा ।
Deleteजी आभार अमित जी, ये विधा माना जाता है गुलजार साहब की ही शुरुवात है और इस में पहली दो पंक्तियों का भाव गंगा यमुना की तरह दिखाई देता है और तीसरी पंक्ति सरस्वती की तरह अदृश्य होती है पर दोनो पंक्तियों के निहित भाव को व्यक्त करती है, गुलजार साहब ने बहुत त्रिवेणी लिखीं है।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी आभार ।
Deleteबहुत सुन्दर त्रिवेणियाँ कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी टिप्पणी सहित उपस्थिति मनभावन लगी।
Deleteबैरी सावन
ReplyDeleteबैरी बेरोजगारी
बहुत सुंदर
बहुत बहुत आभार लोकेश जी
Delete