Followers

Friday, 31 August 2018

"बैरी" तीन त्रिवेणी

बैरी सावन

सिकुड़े से बैठे रहे डरे डरे  सहमे  से
कनस्तर प्याले पारात गीत गाते रहे ।

"बैरी सावन "बरसता रहा रात भर।

बैरी नदिया

किनारे पे बैठ इंतजार किया किये
शाम ढलने तक न आया परदेशी

"बैरी नदिया" उफन उफन बहती रही।

बैरी बेरोजगारी

खाली था पेट एक भी दाना न गया
 पानी पीकर  कब तक गुजारा होगा

"बैरी भूख!! कल नया काम खोजना होगा।
             
                 कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. बहुत ख़ूब ,बैरी मन ,
    सिकुड़े से बैठे रहे डरे -डरे सहमे से
    कन्सतर प्याले पारात गीत गाते रहे .......

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर रचना 🙏

    ReplyDelete
  3. सुंदर त्रिवेणी संगम छोटी छोटी पंक्तियों में बहुत गहरे भाव छुपे बेहतरीन रचना 👌👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सखी पहली बार कोशिश की है,गुलजार साहब काफी लिखते हैं इस विधा में, स्नेह आभार सखी ।

      Delete
  4. बहुत खूब लिखा सखी 👌👌👌
    दिल पर दस्तक देती रचना 🙏🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार सखी आपको पसंद आई मन खुश हुवा ।

      Delete
  5. जी आभार अमित जी, ये विधा माना जाता है गुलजार साहब की ही शुरुवात है और इस में पहली दो पंक्तियों का भाव गंगा यमुना की तरह दिखाई देता है और तीसरी पंक्ति सरस्वती की तरह अदृश्य होती है पर दोनो पंक्तियों के निहित भाव को व्यक्त करती है, गुलजार साहब ने बहुत त्रिवेणी लिखीं है।

    ReplyDelete
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर त्रिवेणियाँ कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी टिप्पणी सहित उपस्थिति मनभावन लगी।

      Delete
  8. बैरी सावन
    बैरी बेरोजगारी
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार लोकेश जी

      Delete