बरखा ऋतु,कभी सरस कभी ताणडव
बादल उमड़ घुमड़ कर आते
घटा घोर नीले नभ छाती
दामिनी दम दम दमकती
मन मे सिहरन सी भरती ।
कभी सरस कभी तांडव सी
बरखा की रूत आती
कभी हरित धरा मुस्काती
कभी जल मग्न हो जाती ।
कृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल खिल जाते
हल की फलक से चीर
धरा को दाना पानी देते ।
बागों मे बहारे आती
डालियाँ फूलों से लद जाती
पपीहा पी की राग सुनाता
कोयल मीठे स्वर मे गाती ।
सावन की घटा घिर आती
झरनों मे रवानी आती
नदिया कल कल स्वर मे गाती
ऋतु गोरी मृदुल मदमाती ।
चांद तारे कहीं छुप जाते
श्यामक शावक धूम मचाते
उड़ उड़ पर्वत से टकराते
झम झम झम पानी बरसाते ।
कुसुम कोठारी।
बादल उमड़ घुमड़ कर आते
घटा घोर नीले नभ छाती
दामिनी दम दम दमकती
मन मे सिहरन सी भरती ।
कभी सरस कभी तांडव सी
बरखा की रूत आती
कभी हरित धरा मुस्काती
कभी जल मग्न हो जाती ।
कृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल खिल जाते
हल की फलक से चीर
धरा को दाना पानी देते ।
बागों मे बहारे आती
डालियाँ फूलों से लद जाती
पपीहा पी की राग सुनाता
कोयल मीठे स्वर मे गाती ।
सावन की घटा घिर आती
झरनों मे रवानी आती
नदिया कल कल स्वर मे गाती
ऋतु गोरी मृदुल मदमाती ।
चांद तारे कहीं छुप जाते
श्यामक शावक धूम मचाते
उड़ उड़ पर्वत से टकराते
झम झम झम पानी बरसाते ।
कुसुम कोठारी।
वर्षा ऋतु का खूबसूरत वर्णन
ReplyDeleteसुंदर रचना
सादर आभार लोकेश जी।
Deleteअति सुन्दर वर्णन वर्षा ऋतु का ...👌👌👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीता ।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना कुसुम जी
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
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