आज नया एक गीत ही लिख दूं।
वीणा का गर
तार न झनके
मन का कोई
साज ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं
मीहिका से
निकला है मन तो
सूरज की कुछ
किरणें लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
धूप सुहानी
निकल गयी तो
मेहनत का
संगीत ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
कुछ खग के
कलरव लिख दूं
कुछ कलियों की
चटकन लिख दूं
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
क्षितिज मिलन की
मृगतृष्णा है
धरा मिलन का
राग ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
चंद्रिका ने
ढका विश्व को
शशि प्रभा की
प्रीत ही लिख दूं ।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
कुसुम कोठारी ।
वीणा का गर
तार न झनके
मन का कोई
साज ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं
मीहिका से
निकला है मन तो
सूरज की कुछ
किरणें लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
धूप सुहानी
निकल गयी तो
मेहनत का
संगीत ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
कुछ खग के
कलरव लिख दूं
कुछ कलियों की
चटकन लिख दूं
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
क्षितिज मिलन की
मृगतृष्णा है
धरा मिलन का
राग ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
चंद्रिका ने
ढका विश्व को
शशि प्रभा की
प्रीत ही लिख दूं ।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।
कुसुम कोठारी ।
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/08/blog-post_11.html
ReplyDeleteरश्मि जी आपके ब्लॉग से होकर आई हूं काफी पढ कर आई हूं बहुत उत्कृष्ट रचनाऐं हैं आपकी और भुमिका बहुत ही सार्थक है ।
Deleteमेरे ब्लॉग पर आपका सादर स्वागत है।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआप कुछ भी लिखें वो सुन्दर ही होगा
स्नेह आभार सखी आपके स्नेह का अतिरेक सदा मुझे प्रोत्साहित करता है कुछ अच्छा लिख सकने को।
Deleteवाह बहुत सुंदर रचना कुसुम जी
ReplyDeleteस्नेह भरा आभार सखी सदा आपकी सराहना मिलती है मेरे लिये मूल्यवान है आपकी प्रतिक्रिया।
Deleteसादर आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया रचना की सार्थकता है ।
ReplyDeleteधुप सुहानी निकल गयी तो ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ... हर छंद लयबद्ध ...
जी सादर आभार,
ReplyDeleteआपकी प्रोत्साहित करती सुंदर सराहना के लिये तहे दिल से शुक्रिया।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/08/82.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार मै अवश्य आऊंगी आदरणीय
ReplyDelete
ReplyDeleteचंद्रिका ने
ढका विश्व को
शशि प्रभा की
प्रीत ही लिख दूं ।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।!!!!!!!
वाह !
सखी हर पहर से गीत की प्रेरणा अर्जित करते भाव बहुत ही हृदयस्पर्शी हैं | कोमल भावों और मनमोहक शब्दावली से सजी सुंदर रचना मुझे बहुत भा रही है कुसुम बहन | आपकी लेखनी यूँ ही आनन्द भरे गीत रचती रहे -- मेरी यही दुआ है | सस्नेह --
रेणू बहन आपने मेरे पंसद की पंक्तियाँ उठा कर मनभावन विश्लेषण दिया सच मन प्रसन्न हो गया और रचना सार्थक हुई।
Deleteबहुत सा स्नेह आभार।
वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूब !!
ReplyDeleteसादर आभार शुभा जी।
Deleteइसके पहले कि धुंध और गहराए.... !
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteवाह्ह..दी सकारात्मक ऊर्जा का ओजस्वी प्रवाह...👌👌
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक सार्थक सृजन है दी:)
सस्नेह आभार श्वेता आपकी रचना को प्रवाह देती प्यारी सी पंक्तियाँ।
Deleteवाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार रोहित जी।
Deleteक्षमा, रोहतास जी पढें।
Deleteहे मीरा की तड़प को संजोने वाली महादेवी जी की मानस-पुत्री ! लिखो! ऐसे ही निश्छल, मधुर, कोमल और आशावान, उत्साह की किरणें बिखेरते हुए गीत लिखो और हमारा ह्रदय आह्लाद से भर दो.
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