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Friday, 10 August 2018

आज नया एक गीत ही लिख दूं

आज नया एक गीत ही लिख दूं।

              वीणा का गर
              तार न झनके
              मन  का कोई
            साज ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं

               मीहिका से
           निकला है मन तो
            सूरज की कुछ
            किरणें लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।

               धूप सुहानी
            निकल गयी तो 
               मेहनत का
           संगीत ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।

             कुछ खग के
           कलरव लिख दूं
          कुछ  कलियों की
           चटकन लिख दूं
आज नया एक गीत ही लिख दूं।

           क्षितिज मिलन की
                मृगतृष्णा है
               धरा मिलन का
              राग ही लिख दूं।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।

                 चंद्रिका ने
              ढका विश्व को
              शशि प्रभा की
            प्रीत ही लिख दूं ।
आज नया एक गीत ही लिख दूं।

              कुसुम कोठारी ।

25 comments:

  1. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/08/blog-post_11.html

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    1. रश्मि जी आपके ब्लॉग से होकर आई हूं काफी पढ कर आई हूं बहुत उत्कृष्ट रचनाऐं हैं आपकी और भुमिका बहुत ही सार्थक है ।
      मेरे ब्लॉग पर आपका सादर स्वागत है।

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  2. बहुत सुन्दर रचना
    आप कुछ भी लिखें वो सुन्दर ही होगा

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    1. स्नेह आभार सखी आपके स्नेह का अतिरेक सदा मुझे प्रोत्साहित करता है कुछ अच्छा लिख सकने को।

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  3. वाह बहुत सुंदर रचना कुसुम जी

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    1. स्नेह भरा आभार सखी सदा आपकी सराहना मिलती है मेरे लिये मूल्यवान है आपकी प्रतिक्रिया।

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  4. सादर आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया रचना की सार्थकता है ।

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  5. धुप सुहानी निकल गयी तो ...
    बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ... हर छंद लयबद्ध ...

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  6. जी सादर आभार,
    आपकी प्रोत्साहित करती सुंदर सराहना के लिये तहे दिल से शुक्रिया।

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  7. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/08/82.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  8. सादर आभार मै अवश्य आऊंगी आदरणीय

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  9. चंद्रिका ने
    ढका विश्व को
    शशि प्रभा की
    प्रीत ही लिख दूं ।
    आज नया एक गीत ही लिख दूं।!!!!!!!
    वाह !
    सखी हर पहर से गीत की प्रेरणा अर्जित करते भाव बहुत ही हृदयस्पर्शी हैं | कोमल भावों और मनमोहक शब्दावली से सजी सुंदर रचना मुझे बहुत भा रही है कुसुम बहन | आपकी लेखनी यूँ ही आनन्द भरे गीत रचती रहे -- मेरी यही दुआ है | सस्नेह --

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    1. रेणू बहन आपने मेरे पंसद की पंक्तियाँ उठा कर मनभावन विश्लेषण दिया सच मन प्रसन्न हो गया और रचना सार्थक हुई।
      बहुत सा स्नेह आभार।

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  10. वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूब !!

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  11. इसके पहले कि धुंध और गहराए.... !

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  12. वाह्ह..दी सकारात्मक ऊर्जा का ओजस्वी प्रवाह...👌👌
    हमेशा की तरह एक सार्थक सृजन है दी:)

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    1. सस्नेह आभार श्वेता आपकी रचना को प्रवाह देती प्यारी सी पंक्तियाँ।

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  13. Replies
    1. जी आपका बहुत बहुत आभार रोहित जी।

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    2. क्षमा, रोहतास जी पढें।

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  14. हे मीरा की तड़प को संजोने वाली महादेवी जी की मानस-पुत्री ! लिखो! ऐसे ही निश्छल, मधुर, कोमल और आशावान, उत्साह की किरणें बिखेरते हुए गीत लिखो और हमारा ह्रदय आह्लाद से भर दो.

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