याद करलें शहीदों को
मातृभूमि की बलिवेदी पे शीश लिये, हाथ जो चलते थे
हाथों मे अंगारे ले के ज्वाला में जो जलते थे
अग्नि ही पथ था जिनका, अलख जगाये चलते थे
जंजीरों मे जकड़ी मां को आजाद कराना था
शिकार खोजते रहते थे जब सारी दुनिया सोती थी
जिनकी हर सुबहो, भाल तिलक रक्त से होती थी
आजादी का शंख नाद जो बिना शंख ही करते थे
जब तक मां का आंचल कांटो से मुक्त ना कर देगें
तब तक चैन नही लेंगे सौ सौ बार शीश कटा लेंगे
दनदन बंदूकों के आगे सीना ताने चलते थे
जुनून मां को आजाद कराने का लिये चलते थे
ना घर की चिंता ना मात पिता,भाई बहन ना पत्नी की
कोई रिश्ता ना बांध सका जिनकी मौत प्रेयसी थी
ऐसे शहीदों पर हर एक देशवासी को है अभिमान
नमन करें उनको जो आजादी की नीव का पत्थर बने
एक विशाल भवन के निर्माण हेतू हुवे बलिदान।
कुसुम कोठारी ।
मातृभूमि की बलिवेदी पे शीश लिये, हाथ जो चलते थे
हाथों मे अंगारे ले के ज्वाला में जो जलते थे
अग्नि ही पथ था जिनका, अलख जगाये चलते थे
जंजीरों मे जकड़ी मां को आजाद कराना था
शिकार खोजते रहते थे जब सारी दुनिया सोती थी
जिनकी हर सुबहो, भाल तिलक रक्त से होती थी
आजादी का शंख नाद जो बिना शंख ही करते थे
जब तक मां का आंचल कांटो से मुक्त ना कर देगें
तब तक चैन नही लेंगे सौ सौ बार शीश कटा लेंगे
दनदन बंदूकों के आगे सीना ताने चलते थे
जुनून मां को आजाद कराने का लिये चलते थे
ना घर की चिंता ना मात पिता,भाई बहन ना पत्नी की
कोई रिश्ता ना बांध सका जिनकी मौत प्रेयसी थी
ऐसे शहीदों पर हर एक देशवासी को है अभिमान
नमन करें उनको जो आजादी की नीव का पत्थर बने
एक विशाल भवन के निर्माण हेतू हुवे बलिदान।
कुसुम कोठारी ।
देश के महान सपूतों के व्यक्तित्व और कृतित्व को शत शत नमन!
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