रानी पद्मिनी का श्रृंगार सौन्दर्य।
ओ पुगल की पद्मिनी
सजा थाल कहां चली
नख शिख श्रृंगार रचा
ओ रूपसी मृगनयनी
कहां चली गज गामिनी
मधुर स्मित रेख रची लब पर
ओ मधुकरी मनस्वी
रत्न जड़ीत दृग जुडवां
शुक नासिका भ्रमरी
मुख उजास चंद्रिका सम उजरो
गुलाब घुल्यो ज्यों क्षीर समंदर
शीश बोरलो झबरक झूमे
चंद्र टिकुली चढी ललाट
काना झुमका नथ मोतियन की
गल साजे नव लख हार
कंगना खनके खनन खनन
पग पायल की रुनझुन
ओ गौरा सी सुभगे
कहां चली चित चोर
सांझ दीपिका झिलमिल
कभी उगती सी भोर।
कुसुम कोठारी
ओ पुगल की पद्मिनी
सजा थाल कहां चली
नख शिख श्रृंगार रचा
ओ रूपसी मृगनयनी
कहां चली गज गामिनी
मधुर स्मित रेख रची लब पर
ओ मधुकरी मनस्वी
रत्न जड़ीत दृग जुडवां
शुक नासिका भ्रमरी
मुख उजास चंद्रिका सम उजरो
गुलाब घुल्यो ज्यों क्षीर समंदर
शीश बोरलो झबरक झूमे
चंद्र टिकुली चढी ललाट
काना झुमका नथ मोतियन की
गल साजे नव लख हार
कंगना खनके खनन खनन
पग पायल की रुनझुन
ओ गौरा सी सुभगे
कहां चली चित चोर
सांझ दीपिका झिलमिल
कभी उगती सी भोर।
कुसुम कोठारी
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteसौन्दर्यीकरण की बेहतरीन कृति।
ReplyDeleteआभार।
जी बहुत सा आभार पम्मी जी ।
Deleteसुंदर 👌👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
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