लहू था शहीदों का
कण कण रज रंग गया
लहू था शहीदों का
कौन चुका पायेगा ऋण
मातृभूमि के सपूतों का
अब मिट्टी में वो उर्वरकता नही
जो ऐसे सपूत पैदा कर दे
अब प्रतिष्ठा के मान दण्ड
बदल रहे हैं प्रतिपल
देश भक्ति अब बस
है बिते युग की बातें
परोसी हुई मिली आजादी
कौन कीमत पहिचाने
अपना दर्द सर्वोपरि है
दर्द देश का कौन जाने
वर्षों से एक भी प्रताप
सा योद्धा नही देखा
ना राज गुरु ना भगत सिंह
ना कोई सुख देव दिखा
ना आजाद ना पटेल
ना कोई सुभाष दिखा
और बहुत थे नामी गुमनामी
अब कदाचित ऐसे महा वीर
दृष्टि गोचर होते नही
ये धरा का दुर्भाग्य है
या है कोई संकेत कयामत का
सब कुछ समझ से बाहर है
कोई राह सुलझी नही।
अब मिट्टी मे वो उर्वरकता रही नही।
कुसुम कोठारी।
कण कण रज रंग गया
लहू था शहीदों का
कौन चुका पायेगा ऋण
मातृभूमि के सपूतों का
अब मिट्टी में वो उर्वरकता नही
जो ऐसे सपूत पैदा कर दे
अब प्रतिष्ठा के मान दण्ड
बदल रहे हैं प्रतिपल
देश भक्ति अब बस
है बिते युग की बातें
परोसी हुई मिली आजादी
कौन कीमत पहिचाने
अपना दर्द सर्वोपरि है
दर्द देश का कौन जाने
वर्षों से एक भी प्रताप
सा योद्धा नही देखा
ना राज गुरु ना भगत सिंह
ना कोई सुख देव दिखा
ना आजाद ना पटेल
ना कोई सुभाष दिखा
और बहुत थे नामी गुमनामी
अब कदाचित ऐसे महा वीर
दृष्टि गोचर होते नही
ये धरा का दुर्भाग्य है
या है कोई संकेत कयामत का
सब कुछ समझ से बाहर है
कोई राह सुलझी नही।
अब मिट्टी मे वो उर्वरकता रही नही।
कुसुम कोठारी।
वर्षों से एक भी प्रताप
ReplyDeleteसा योद्धा नही देखा
ना राज गुरु ना भगत सिंह
ना कोई सुख देव दिखा
ना आजाद ना पटेल
ना कोई सुभाष दिखा वाह बहुत ही सुन्दर रचना सखी
आभार सखी आपकी शुक्रगुजार रहूंगी सदा।
Deleteकई बार समय भी आपात स्थिति से गुज़रता है पर देश समाज के लिए हर पल जॉन कोई उठता है ... देश के सैनिक भी ऐसा करते हैं ... बलिदान देते हैं ...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना ...
सादर आभार सही कहा आपने बहुत बार हम पूर्वाग्रहों मे फसे रहते हैं और समानांतर चलती उपलब्धियों और नियामत ओं को नजर अंदाज करते जाते हैं। ये एक दृढ सत्य है कि देश की रक्षार्थ जो जवान रात दिन जुझते हैं वो हमारे शांति और आराम दायक जीवन का वरदान है सदैव सदा।
Deleteपुनः आभार ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteजी जरूर उपस्थित होऊंगी।
बहुत सा आभार शकुंतला जी ।
ReplyDeleteअब मिट्टी में वो उर्वरकता नही
ReplyDeleteजो ऐसे सपूत पैदा कर दे
अब प्रतिष्ठा के मान दण्ड
बदल रहे हैं प्रतिपल
देश भक्ति अब बस
है बिते युग की बातें!!!!!!!!!!!!!
वाह !!!सखी बहुत ही मर्मस्पर्शी बात लिख दी आपने | ये प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है कि अब क्यों ऐसे लोग पैदा नहीं होते या फिर देश प्रेम के लिए भावनाएं क्यों उमड़ती??????? बेहतरीन लेखन के लिए बहुत शुभकामनायें |