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Wednesday, 1 August 2018

निशांत का संगीत

आदित्य आचमन

लो चंदन महका और खुशबू उठी हवाओं मेंं
कैसी सुषमा  निखरी  वन उपवन उद्धानों मेंं

निकला उधर अंशुमाली  गति  देने जीवन मेंं
निशांत का,संगीत ऊषा गुनगुना रही अंबर मेंं

मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद मेंं
महा अनुगूंज बन बिखर गई सारे नीलांबर मेंं

वो देखो हेमांगी  पताका  लहराई क्षितिज मेंं
पाखियों का कलरव फैला चहूं और भुवन मेंं

कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी मेंं
विटप झुम  उठे  हवाओं के मधुर संगीत मेंं

वागेश्वरी  स्वयं  नवल वीणा ले उतरी धरा मेंं
कर लो गुनगान अद्वय आदित्य के आचमन मेंं

लो फिर आई है सज दिवा नवेली के वेश मेंं
करे  सत्कार जगायें  नव निर्माण विचारों मेंं।
                 कुसुम कोठारी ।

18 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर रचना 👌

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    1. आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा मन मोह लेती है सखी, स्नेह आभार ।

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  2. निसर्ग है ही बहुत सुन्दर और आप की रचना उसे और भी खूबसूरत बना देती है।
    बहुत अच्छी रचना सखी। अद्भुत

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    1. बहुत ढेर सा आभार सखी आपकी सराहना सदा मन मोह होती है ।

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  3. आभार बहुत सा, और आना भी निश्चित है।
    सादर।

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  4. जी नमस्ते,
    ३ अगस्त की जगह २ अगस्त का आमंत्रण छप गया। टंकन त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. कोई नही, ऐसा हो जाता है।
      सस्नेह।

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  5. बहुत ही खूबसूरत रचना

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    1. जी सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।

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  6. उम्दा लेखन आदरणीया

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    1. सस्नेह आभार सुप्रिया जी आपको देख सुखद अनुभूति।
      उत्साह वर्धन के लिये ढेर सा आभार ।

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  7. जी बहुत बहुत आभार रचना को स्तंभ देती सुंदर सराहना ।

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  8. बहुत सुन्दर शब्द विन्यास ... नव विचारों का निर्माण तो आपकी लेखनी कर रही है ...
    उत्तम सृजन

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    1. जी आदरणीय बहुत सा आभार, आपकी प्रोत्साहित करती, पंक्ति विशेष पर विशेष टिप्पणी देती मनभावन प्रतिक्रिया ।
      सादर।

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  9. जगायें नव निर्माण विचारों मेंं।
    मन को प्रफुल्लित करने वाली रचना

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    1. जी बहुत सा आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया लेखन को आगे और दृढ़ता देगी ।
      सादर।

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  10. सादर आभार आदरणीय मै उपस्थित रहूंगी।

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