आंखें बेजुबान कितना बोलती है
कभी रस कभी जहर घोलती है
बिन तराजु ये तो मन तोलती है
कभी छुपाती कभी राज खोलती है।
इन आंखों के कितने अफसाने हैं
इन आंखों के कितने दीवानें है
इन आंखों में कितने बहाने हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।
आंखें कभी जिंदगी का शुरूर है
आंखें कभी लिये कितना गुरुर है
आंखें ओढे ख्वाबों का फितूर है
आंखे कभी झुकी कभी मगरुर है।
ये आंखें कभी चुभते तीर हैं
ये आंखें समेटे कितनी पीर है
ये आंखें झुठ, कभी ताबीर है
ये आंखे कभी आम कभी मीर है।
कुसुम कोठारी।
कभी रस कभी जहर घोलती है
बिन तराजु ये तो मन तोलती है
कभी छुपाती कभी राज खोलती है।
इन आंखों के कितने अफसाने हैं
इन आंखों के कितने दीवानें है
इन आंखों में कितने बहाने हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।
आंखें कभी जिंदगी का शुरूर है
आंखें कभी लिये कितना गुरुर है
आंखें ओढे ख्वाबों का फितूर है
आंखे कभी झुकी कभी मगरुर है।
ये आंखें कभी चुभते तीर हैं
ये आंखें समेटे कितनी पीर है
ये आंखें झुठ, कभी ताबीर है
ये आंखे कभी आम कभी मीर है।
कुसुम कोठारी।
Such a great line we are Online publisher India invite all author to publish book with us
ReplyDeleteji thanks.
Deleteवाह बेहतरीन रचना कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार सखी ।
Deleteवाह
ReplyDeleteशानदार और गहरी बातें कहती रचना .
जी सादर आभार ।
Deleteबेहतरीन .....👌👌👌👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीता ।
Deleteगज़ब गज़ब गज़ब।।।।।।। इन आँखों के कितने अफ़साने हैं!!!!
ReplyDeleteइन आंखों के कितने अफसाने हैं
इन आंखों के कितने दीवानें है
इन आंखों में कितने बहाने हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।
बेमिसाल बेमिसाल दी जी। wahhhhhh। इन आँखों की जितनी परिधि है, उससे गहन आपकी दूरदृष्टि है। एक से बढ़कर एक तब्सिरा। अलहदा ख़यालात। यह सब आप ही देख सकतीं हैं। रच सकतीं हैं। नमन
सुप्रभात।
Deleteसस्नेह आभार भाई आपकी जबरदस्त प्रतिपंक्तियां रचना को खास बना गई ।
सदा उत्साह वर्धन के लिये शुक्रिया ढेर सा ।
वाह सखी लाजवाब लिखा 👌👌👌
ReplyDeleteआप जैसी पारखी नजर हो तो क्या मजाल की कुछ छुप जाये
बहुत सुन्दर लिखा ....शानदार
सुप्रभात सखी।
Deleteबहुत सा स्नेह और उत्साह बढाती आपकी प्रतिक्रिया का आभार सखी ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २७ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार ।मै अवश्य आऊंगी ।
Deleteसादर आभार।
ReplyDeleteजी मै अवश्य आऊंगी ।
बहुत ही सुन्दर आंखों की व्याख्या सखी बहुत ही
ReplyDeleteभावप्रवण रचना
सस्नेह आभार सखी ।
Deleteआंखे बेजुबान है फिर भी कर देती खुद की व्याख्या बोलती तो न जाने क्या कहती....
इन आंखों के कितने अफसाने हैं
ReplyDeleteइन आंखों के कितने दीवानें है
इन आंखों में कितने बहाने हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।
बहुत खूब कुसुम बहन -- आखों के इन अफसानों में एक अफसाना आपकी कलम से - बहुत ही सरस और सहज सा !!!!!सुंदर रचना आखों के बहाने से | सस्नेह --
रेणू बहन आप जब भी आते हो, भीनी सौरभ सी छा जाती है, मै आपकी सराहना की भी क्या सराहना करूं समझ नही पाती सस्नेह बहन, आपकी उपस्थिति का सदा इंतजार रहता है
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