बूझो कौन?
मै शब्द शब्द चुनती हूं
अर्थ सजाती हूं
दिल की पाती ,
नेह स्याही लिख आती हूं
फूलों से थोड़ा रंग,
थोड़ी महक चुराती हूं
फिर खोल अंजुरी
हवा में बिखराती हूं
चंदा की चांदनी
आंखो में भरती हूं
और खोल आंखे
मधुर सपने बुनती हूं
सूरज की किरणो को
जन जन पहुँचाती हूं
हवा की सरगम पर
गीत गुनगुनाती हूं
बूझो कौन ?नही पता!
मैं ही बतलाती हूं
जब निराशा छाने लगे
मैं " आशा " कहलाती हूं ।
कुसुम कोठारी ।
मै शब्द शब्द चुनती हूं
अर्थ सजाती हूं
दिल की पाती ,
नेह स्याही लिख आती हूं
फूलों से थोड़ा रंग,
थोड़ी महक चुराती हूं
फिर खोल अंजुरी
हवा में बिखराती हूं
चंदा की चांदनी
आंखो में भरती हूं
और खोल आंखे
मधुर सपने बुनती हूं
सूरज की किरणो को
जन जन पहुँचाती हूं
हवा की सरगम पर
गीत गुनगुनाती हूं
बूझो कौन ?नही पता!
मैं ही बतलाती हूं
जब निराशा छाने लगे
मैं " आशा " कहलाती हूं ।
कुसुम कोठारी ।
वाकई शब्दों पर आप की पकड़ बहुत मजबूत है। सुन्दर शब्द चयन।शानदार रचना
ReplyDeleteआभार प्रिय सखी आपकी सदा मन भावन प्रतिक्रिया लेखन को और प्रोत्साहित करती ।
Deleteसस्नेह ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteझंजावत के झोंको मे तुम , आशा दीप जलाती हो ।।
ReplyDeleteआशाओ के दीप जलाती , आशा तुम कहलाती हो ।।
गर्व मुझे है नेट जगत मे , मेरी बेटी कहलाती हो ।।
कुसुम हमारी ही वह आशा , तुम्ही तो कहलाती हो ।।
निशब्द काकासा आपके अतुल्य स्नेह की अनुभाग हूं मैं,
Deleteसादर आभार।
वाह वाह बेहतरीन ...मीता आपका आशा दीप सदा प्रज्वलित रहे ...👍👍👍👍👍
ReplyDeleteआपका स्नेह स्वाद सदा मिलता रहे मीता।
Deleteअतुल्य आभार।
लाजवाब सृजन,बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत छानदार कुसुम कोठरी जी आप कि कलम कि धार बहुत सुन्दर है👌👌👍👍
ReplyDeleteबहुत छानदार कुसुम कोठरी जी आप कि कलम कि धार बहुत सुन्दर है👌👌👍👍
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