Sunday, 12 August 2018

मै "आशा" कहलाती

बूझो कौन?

मै शब्द शब्द चुनती हूं
अर्थ सजाती हूं
दिल की पाती ,
नेह स्याही लिख आती हूं

फूलों से थोड़ा रंग,
थोड़ी महक चुराती हूं
फिर खोल अंजुरी
हवा में बिखराती हूं

चंदा की चांदनी
आंखो में भरती हूं
और खोल आंखे
मधुर सपने बुनती हूं

सूरज की किरणो को
जन जन पहुँचाती हूं
हवा की सरगम पर
गीत गुनगुनाती हूं

बूझो कौन ?नही पता!
मैं ही बतलाती हूं
जब निराशा छाने लगे
मैं " आशा " कहलाती हूं ।

        कुसुम कोठारी ।

10 comments:

  1. वाकई शब्दों पर आप की पकड़ बहुत मजबूत है। सुन्दर शब्द चयन।शानदार रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार प्रिय सखी आपकी सदा मन भावन प्रतिक्रिया लेखन को और प्रोत्साहित करती ।
      सस्नेह ।

      Delete
  2. झंजावत के झोंको मे तुम , आशा दीप जलाती हो ।।
    आशाओ के दीप जलाती , आशा तुम कहलाती हो ।।
    गर्व मुझे है नेट जगत मे , मेरी बेटी कहलाती हो ।।
    कुसुम हमारी ही वह आशा , तुम्ही तो कहलाती हो ।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. निशब्द काकासा आपके अतुल्य स्नेह की अनुभाग हूं मैं,
      सादर आभार।

      Delete
  3. वाह वाह बेहतरीन ...मीता आपका आशा दीप सदा प्रज्वलित रहे ...👍👍👍👍👍

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका स्नेह स्वाद सदा मिलता रहे मीता।
      अतुल्य आभार।

      Delete
  4. लाजवाब सृजन,बहुत खूब

    ReplyDelete
  5. बहुत छानदार कुसुम कोठरी जी आप कि कलम कि धार बहुत सुन्दर है👌👌👍👍

    ReplyDelete
  6. बहुत छानदार कुसुम कोठरी जी आप कि कलम कि धार बहुत सुन्दर है👌👌👍👍

    ReplyDelete