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Monday, 27 August 2018

रात सुहानी अंबर प्रांगण

रात सुहानी अंबर प्रांगण

छाई घटाऐं मन हर्षा
पानी बरसा
रिमझिम  रिमझिम।

कृष नदियां लगी फैलने
लगी बहने
कलकल  कलकल।

फुलवा बिनन को आई राधे
बाजी पायल
छमछम छमछम।

रात सुहानी अंबर प्रांगण
तारे चमके
चमचम चमचम।

विरहन बैठी आश लगाये
आंखें बरसी
छलछल छलछल ।

       कुसुम कोठारी।

8 comments:

  1. बेहतरीन मन भावन.छम छम सा लेखन
    नमन

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    1. सस्नेह आभार मीता ।
      बंदा नवाजी का शुक्रिया।

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  2. सुंदर रचना 👌👌

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  3. वाह सखी बहुत सुन्दर लिखा 👌👌👌
    शायद ही कोई विषय हो जो आप से अछूता रहा हो
    शानदार लेखन है आप का 🙏🙏🙏

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    1. आपकी स्नेहिल दृष्टि का कमाल है सखी ।
      बहुत बहुत स्नेह सखी ।

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  4. वाहः वाहः
    बहुत ही खूबसूरत एहसास

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    1. बहुत सा आभार लोकेश जी ।

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