रात सुहानी अंबर प्रांगण
रात सुहानी अंबर प्रांगण
छाई घटाऐं मन हर्षा
पानी बरसा
रिमझिम रिमझिम।
कृष नदियां लगी फैलने
लगी बहने
कलकल कलकल।
फुलवा बिनन को आई राधे
बाजी पायल
छमछम छमछम।
रात सुहानी अंबर प्रांगण
तारे चमके
चमचम चमचम।
विरहन बैठी आश लगाये
आंखें बरसी
छलछल छलछल ।
कुसुम कोठारी।
बेहतरीन मन भावन.छम छम सा लेखन
ReplyDeleteनमन
सस्नेह आभार मीता ।
Deleteबंदा नवाजी का शुक्रिया।
सुंदर रचना 👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteवाह सखी बहुत सुन्दर लिखा 👌👌👌
ReplyDeleteशायद ही कोई विषय हो जो आप से अछूता रहा हो
शानदार लेखन है आप का 🙏🙏🙏
आपकी स्नेहिल दृष्टि का कमाल है सखी ।
Deleteबहुत बहुत स्नेह सखी ।
वाहः वाहः
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत एहसास
बहुत सा आभार लोकेश जी ।
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