Wednesday, 15 August 2018

सोम सुधा बन बरसो तुम

आ जाओ तुम कविता बन।

जीवन आंगन में रुनझुन रुनझुन
पायल बन छनको बस तुम
आ जाओ तुम कविता बन।

सूनी सांझ, खग लोटे नीड़ों में
  कलरव बन छा जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।

संतप्त हृदय एकाकी मन उपवन
सोम सुधा रस बन बरसो तुम
आ जाओ तुम कविता बन।

शब्द भाव अहसास बहुत है
अर्थ  बन सज जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।

निश्छल मन के कोरे सर सलिल में
कमलिनी बन खिल जाओ तुम
आ जाओ तुम कविता बन।

             कुसुम कोठारी ।

11 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर रचना कुसुम जी

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  2. बेहद उम्दा भाव।

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    1. स्नेह आभार सखी, आपको भाई रचना ।

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  3. प्रिय कुसुम बहन -- बहुत ही मीठी सी और प्यारी मनमोहक रचना से मन को आह्लादित क्र दिया आपने |सुमधुर कोमल शब्दावली मन को माधुर्य में सराबोर कर रही है |
    शब्द भाव अहसास बहुत है
    अर्थ बन सज जाओ तुम
    आ जाओ तुम कविता बन।

    निश्छल मन के कोरे सर सलिल में
    कमलिनी बन खिल जाओ तुम!!!!!
    वाह और सिर्फ वाह बहना !!!!!!!!

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    1. सच कहूं रेणू बहन ये कविता लिखने के बाद मुझे भी निकी सी भा गई ,और आपकी प्रतिक्रिया और प्रतिपंक्तियां सच स्नेह से भर गई लगा जैसे कविता सच आ गई ।(आ जाओ तुम कविता बन)।
      सस्नेह आभार बहन ।

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    2. ओह कुसुम बहन आपका स्नेह अनमोल है |

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    3. सस्नेह रेनू बहन ।

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  4. जी सादर आभार, रचना को कोमलता से उठा कर चला दिया आपने ।
    मनभावन प्रतिक्रिया।

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