" कभी न कभी "
मन की दहलीज पर
स्मृति का चंदा उतर आता
यादों के गगन पर,
सागर के सूने तट पर
फिर लहरों की हलचल
सपनो का भूला संसार
फिर आंखों मे ,
दूर नही सब
पास दिखाई देते हैं
न जाने उन अपनो के
दरीचों मे भी कोई
यादों का चंदा
झांकता हो कभी,
हां भुला सा कल सभी को
याद तो आता ही होगा
यादों की दहलीज पर
कोई मुस्कुराता ही होगा
कभी न कभी ।
कुसुम कोठारी ।
मन की दहलीज पर
स्मृति का चंदा उतर आता
यादों के गगन पर,
सागर के सूने तट पर
फिर लहरों की हलचल
सपनो का भूला संसार
फिर आंखों मे ,
दूर नही सब
पास दिखाई देते हैं
न जाने उन अपनो के
दरीचों मे भी कोई
यादों का चंदा
झांकता हो कभी,
हां भुला सा कल सभी को
याद तो आता ही होगा
यादों की दहलीज पर
कोई मुस्कुराता ही होगा
कभी न कभी ।
कुसुम कोठारी ।
यादों की दहलीज .....वाह सुरम्य काव्य
ReplyDeleteस्नेह आभार मीता ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ११ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्नेह आभार ।
Deleteवाह!!बहुत खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteस्नेह आभार आपका शुभा जी
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