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Tuesday, 19 June 2018

मै उन्मुक्त गगन का राही

मै उन्मुक्त गगन का राही

निर्मल, शीतल, सम्मोहन सा
पीछे मेरे किरणों का वितान
तारों की चुनरी है नभ की
मै नीले भाल चमकता टीका
बिन मेरे आकाश है फीका

मै उन्मुक्त गगन का राही

उज्ज्वल रश्मि मेरी
चंचल हिरणी सी कुलांचे भरती
वन विचरण करती
बन पाखी, द्रुम दल विहंसती
जा सूनी मूंडेरें चढती
झांक आती सबके झरोखे
फूलों से क्रीडा करती,

मै उन्मुक्त गगन का राही

बाग बगीचे आच्छादित मुझ से
तम को दूर भगाता
शीतलता देता भरपूर
सबको भाता मन को लुभाता
सूरज आते ही छिप जाता।

मै उन्मुक्त गगन का राही।

        कुसुम कोठारी।

13 comments:

  1. वाह्ह्ह...वाह्ह्ह...दी सरस..सुंदर चाँद पर इतनी प्यारी कविता...मनमोहक शब्दावली.. बेहद दिलक़श है दी...👌👌

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    1. सस्नेह आभार श्वेता ।
      आपकी प्यार भरी सराहना से कविता सार्थक हुई ।

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    2. दी कि रचनाएँ आज़ाद होती है हमेशा से सकारात्मकता, जाने कब मुझ पर असर होगा और मैं आज़ाद लिख पाऊँगा ❤

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    3. आभार भाई, जय हो।

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  2. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 21 जून 2018 को प्रकाशनार्थ 1070 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. जी सादर आभार मै अनुग्रहित हुई, मै ब्लाग पर अवश्य आऊंगी ।
      साभार।

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  3. बहुत सुन्दर मनमोहक रचना....
    उन्मुक्त गगन का राही....
    वाह!!!

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  4. प्रिय कुसुम बहन -- चाँद गगन की शोभा है | उसकी चांदनी रात किया श्रृंगार करती है | फिर वह क्यों ना इतराए और अपना योगदान बताये | चाँद केइठलाते आत्मगौरव को खूब लिखा आपने| सस्नेह --

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  5. स्नेह आभार रेनू बहन आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया सदा उत्साहित करती है और रचना का सुंदर विश्लेषण भी

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. वाह बहुत सुंदर रचना सखी।बेहतरीन सृजन।

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