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Tuesday, 5 June 2018

गूजरिया

ओ सुनयनी सरोजिनी गूजरिया
चंचल चपल नैन सोहे कजरिया
ज्यों बादर बीच चमके बिजुरिया
ललाट शोभित चंदा सी रखरिया।

तीखी नासिका दमके नथनिया
अधर गुलाब  मधुर मुस्कनिया
ग्रीवा सुडौल सजत नौलखिया
कान सुघड़ झुमका झनकईया।

बांह चम्पई खन खनकत  चूरियां
लचकत कमर बांध करधनिया
केशरी लहंगा रतनार  चुनरिया
चलत  छमकत  पांव पैजनिया ।

पनिया भरन  आई पनघटिया
शीश कलश माटी की झरिया
ताल पोखरे रीते, सूखी दरिया
अब तो पानी बरसा मन हरिया।
                  कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. वाह मीता इतने सुंदर सृजन ने मुझे शब्दहीन कर दिया, अप्रतिम, अद्भुत👏👏👏👏👏👏👏

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    1. और मुझे आपकी प्रति पंक्तियों ने अभिभूत।
      सस्नेह आभार मीता

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  2. बहुत सुंदर अलंकृत रचना ...
    शब्दों का सुंदर तानाबाना ...

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    1. सादर आभार आदरणीय,
      उत्साह वर्धन करती आपकी सराहना।

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  3. स्नेह आभार ।
    मुझे आकर प्रसन्नता होगी।
    सादर।

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  4. लोकगीत का स्मरण दिलाती मधुरता लिए सुंदर रचना..

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    1. सादर आभार माननीया ब्लॉग पर आपको देख सुखद अनुभूति हुई।

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