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Saturday, 2 June 2018

अंधो के शहर मे आईना बेचने आया हूं

फिर से आज एक कमाल करने आया हूं
अंधो के शहर मे आईना बेचने आया हूं।

संवर कर सुरत तो देखी कितनी मर्तबा शीशे मे
आज बीमार सीरत का जलवा दिखाने आया हूं।

जिन्हें ख्याल तक नही आदमियत का
उनकी अकबरी का पर्दा उठाने आया हूं।

वो कलमा पढते रहे अत्फ़ ओ भल मानसी का
उन के दिल की कालिख का हिसाब लेने आया हूं।

करते रहे उपचार  किस्मत ए दयार का
उन अलीमगरों का लिलार बांच ने आया हूं।
       
                        कुसुम कोठारी।

अकबरी=महानता  अत्फ़=दया
किस्मत ए दयार= लोगो का भाग्य
अलीमगरों = बुद्धिमान
लिलार =ललाट(भाग्य)

10 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. सादर आभार आदरणीय, आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धन करती है।

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  3. वाह वाह ...सटीक लाजवाब
    मुखौटा उतारती रचना

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    1. सस्नेह आभार मीता सार्थक मनोबल बढाती आपकी प्रतिक्रिया ।

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  4. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् लाज़वाब कर दित्ता👏👏👏👏👏

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    1. इतनी लम्बी वाह वाही मीता, स्नेह आभार।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ।

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  5. वाह !! बहुत ख़ूब!!

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