खुशियों के अंकुर
खुशियों के जो बीज मिले
भर लूं उन को बस मुठ्ठी मे
उन्हें छींट दूं आगंन मे
आंख के आंसू जब
बारिश बन कर बरसेंगे
नव खुशियों के अंकुर फूटेगें
प्यार की कलियाँ चटकेगी
रंग बिरंगे फूल खिलेंगे
लहरायेगी हरियाली
ना रहेगा कोई गम
आंगन भर जायेगा मेरा
खुशियों से बस खुशियों से ।
कुसुम कोठारी।
वाह दीदी जी
ReplyDeleteबेहद आनन्दायी रचना
मन में भी खुशीयो का अंकुर फूट गया
अतिसुंदर 👌
स्नेह आभार आंचल आपका।
Deleteआप की रचना का जबाब नहीं 👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
जी तहेदिल से शुक्रिया। ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह वर्धक ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्नेह आभार श्वेता ।
Deleteवाह!!कुसुम जी ,क्या बात है ,बहुत ही उम्दा ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
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