तुम्ही पे तुम्ही से
संचित जलाशय सा जीवन
कहो किस काम का
कुछ तो गति हो जीवन मे
स्थिर जल मे जन्म लेती हैं
शैवालिका जो
पानी का अमरत्व हर लेती
सहज झरना बन बहो
हां गिरना तो होगा
अचल अटल श्रेणीयों से
पर एक मधुर जीवन राग
गूंजेगा वादियों मे
कितनी नई राहें
बनेगी पद चिंहों से
हरितिमा मुस्कुरायेगी
बाहुपाश मे
संचित जलाशय भी
तो निर्भर होगें
तुम्ही पे तुम्ही से।
कुसुम कोठारी।
संचित जलाशय सा जीवन
कहो किस काम का
कुछ तो गति हो जीवन मे
स्थिर जल मे जन्म लेती हैं
शैवालिका जो
पानी का अमरत्व हर लेती
सहज झरना बन बहो
हां गिरना तो होगा
अचल अटल श्रेणीयों से
पर एक मधुर जीवन राग
गूंजेगा वादियों मे
कितनी नई राहें
बनेगी पद चिंहों से
हरितिमा मुस्कुरायेगी
बाहुपाश मे
संचित जलाशय भी
तो निर्भर होगें
तुम्ही पे तुम्ही से।
कुसुम कोठारी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविववार 10 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया, मै अवश्य उपस्थित रहूंगी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteवाह!!बहुत खूब ...कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत सा आभार सशुभा जी
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसादर ।