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Friday, 8 June 2018

तुम्ही पे तुम्ही से

तुम्ही पे तुम्ही से

संचित जलाशय सा जीवन
कहो किस काम का
कुछ तो गति हो जीवन मे
स्थिर जल मे जन्म लेती हैं
शैवालिका जो
पानी का अमरत्व हर लेती
सहज झरना बन बहो
हां गिरना तो होगा
अचल अटल श्रेणीयों से
पर एक मधुर जीवन राग
गूंजेगा वादियों मे
कितनी नई राहें
बनेगी पद चिंहों से
हरितिमा मुस्कुरायेगी
बाहुपाश मे
संचित जलाशय भी
तो निर्भर होगें
तुम्ही पे तुम्ही से।

 कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविववार 10 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीया, मै अवश्य उपस्थित रहूंगी

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  2. वाह!!बहुत खूब ...कुसुम जी ।

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    1. बहुत सा आभार सशुभा जी

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  3. सुंदर रचना
    सादर ।

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