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Wednesday, 20 June 2018

क्षण भंगुर

क्षण भंगुर

किस का गुमान 
कौन सा अभिमान
माटी मे मिल जानी माटी की ये  शान।

भूल भुलैया मे भटका
खुद के गर्व मे तूं अटका
कितने आये कितने चले गये मेहमान ।

एक पल के किस्से मे
तेरे मेरे के हिस्से मे
जीवन के कोरे पल अनजान ।

ना फूल झुठी बडाई मे
ना  पड़ निरर्थक लडाई मे
सब काल चक्र का फेरा है नादान।

तूं धरा का तुक्ष कण है
आया अकेला जाना क्षण मे
समझ ले ये सार मन मे कर संज्ञान  ।
     
  किसका गुमान...
                           कुसुम कोठारी ।

15 comments:

  1. माटी कहे कुम्हार से
    तू क्या रौंदे मोय
    एक दिन एसो आयगो
    में रोदूगी तोय !
    आध्यत्मिक रचना मीता नमन

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    1. आभार मीता सही कहा कबीर जी ने मानव ही माटी के हाथ रौंदा जायेगा जब जाने का दिन आयेगा ।

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  2. वाह!!कुसुम जी ..लाजवाब । सब जानते हैं ,फिर भी गुमान करते है ....।

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    1. स्नेह आभार शुभा जी।
      सराहना और समर्थन दोनो का तहे दिल से शुक्रिया।

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  3. क्षण भंगुर जीवन पर मत कर गुमान.....
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर रचना कुसुम जी ...
    लाजवाब रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको...

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  4. सुखद आश्चर्य सुधा जी आप को बहुत समय बाद देख मन खुश हुवा।
    ढेर सा आभार सखी।

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  5. बहुत बहुत आभार अंतिम जी आपकी सराहना लेखन को प्रोत्साहित करती सी।

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/06/75.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. जी सादर आभार मै उपस्थित रहूंगी।

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  7. महल और माटी दोनों का अस्तित्व एक ही है, फिर यह गुमान क्यों

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    1. जी सही व्याख्या, सादर आभार आपका।

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  8. तन माटी मनुवा भूल चला -
    धन , जोबन , मद में फूल चला ,
    माटी की देह बनी माटी -
    माटी में मिल उड़ धुल चला !!!!!!
    जीवन के शाश्वत सत्य से साक्षात्कार कराती अध्यात्मिक रचना प्रिय कुसुम बहन |सचमुच यही सब भूल कर ही तो जी रहे हैं हम | सस्नेह --

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  9. वाह बहुत ही गहरी और शाश्वत सी पंक्तियाँ आपकी और सराहना भी मनभाऐ, आभार रेनू बहन

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