Tuesday, 5 June 2018

कभी ना कभी (दहलीज )

" कभी न कभी "
मन की दहलीज पर
स्मृति का चंदा उतर आता
यादों के गगन पर,

सागर के सूने तट पर
फिर लहरों की हलचल
सपनो का भूला संसार
फिर आंखों मे ,

दूर नही सब
पास दिखाई देते हैं
न जाने उन अपनो के
दरीचों मे भी कोई
यादों का चंदा
झांकता हो कभी,

हां भुला सा कल सभी को
याद तो आता ही होगा
यादों की दहलीज पर
कोई मुस्कुराता ही होगा
कभी न कभी ।
       कुसुम कोठारी ।

6 comments:

  1. यादों की दहलीज .....वाह सुरम्य काव्य

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ११ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. वाह!!बहुत खूबसूरत रचना ।

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    1. स्नेह आभार आपका शुभा जी

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