प्रश्न वही, इंसा क्यों निर्बल होता है ?
जज्बातों की जंजीर में जकड़ा
निज मन कुंठा में उलझा
खुद को खोए जाता है,
प्रश्न वही, इंसा क्यों बेबस होता है ?
मन मंथन का गरल भी पीता
निज प्राण पीयूष भी हरता
फिर भी न स्वयं भू होता है,
प्रश्न वही, इंसा क्यों विवश होता है ?
खुद को खोता, चैन गवाता
मन के तम में भटका जाता
समय की ठोकर खाता है,
प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?
दूर किसी से नाता जोड़े
पास से अंजान होता
आसमाँ तो मिले नही
अपना आधार भी खोता है।
प्रश्न वही इंसा क्यों नादाँ होता है?
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा
जज्बातों की जंजीर में जकड़ा
निज मन कुंठा में उलझा
खुद को खोए जाता है,
प्रश्न वही, इंसा क्यों बेबस होता है ?
मन मंथन का गरल भी पीता
निज प्राण पीयूष भी हरता
फिर भी न स्वयं भू होता है,
प्रश्न वही, इंसा क्यों विवश होता है ?
खुद को खोता, चैन गवाता
मन के तम में भटका जाता
समय की ठोकर खाता है,
प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?
दूर किसी से नाता जोड़े
पास से अंजान होता
आसमाँ तो मिले नही
अपना आधार भी खोता है।
प्रश्न वही इंसा क्यों नादाँ होता है?
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१२-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-२९ 'प्रश्न '(चर्चा अंक ३७६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
जी बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteचर्चा मंच पर चयन के लिए ।
साभार।
सारगर्भित गीत।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteदूर किसी से नाता जोड़े
ReplyDeleteपास से अंजान होता
आसमाँ तो मिले नही
अपना आधार भी खोता है।
प्रश्न वही इंसा क्यों नादाँ होता है?
सचमें क्यों इतना विवश, क्यों इतना बेवश है इंसान
अपनी सामर्थ्य से अधिक अपेक्षाएं पालता है....
बहुत ही सटीक प्रश्न ...लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी मन खुश हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
Deleteखुद को खोता, चैन गवाता
ReplyDeleteमन के तम में भटका जाता
समय की ठोकर खाता है,
प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?
एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर जानते सभी है पर मानते नहीं बहुत खूब,सादर नमन आपको कुसुम जी
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह