Saturday, 11 July 2020

प्रश्न वहीं इंसान क्यों निर्बल होता है

प्रश्न वही, इंसा क्यों निर्बल होता है ?

जज्बातों की जंजीर में जकड़ा
निज मन  कुंठा में उलझा
खुद को खोए जाता है,
प्रश्न वही, इंसा क्यों बेबस होता है ?                 

मन मंथन का गरल भी पीता
निज प्राण पीयूष भी हरता
फिर भी न स्वयं भू होता है,
प्रश्न वही, इंसा क्यों विवश होता है ?

खुद को खोता, चैन गवाता
मन के तम में भटका जाता
समय की ठोकर खाता है,
प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?

दूर किसी से नाता जोड़े
पास से अंजान होता
आसमाँ तो मिले नही
अपना आधार भी खोता है।

प्रश्न वही इंसा क्यों  नादाँ होता है?
             कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा

8 comments:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१२-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-२९ 'प्रश्न '(चर्चा अंक ३७६०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका ।
      चर्चा मंच पर चयन के लिए ।
      साभार।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  3. दूर किसी से नाता जोड़े
    पास से अंजान होता
    आसमाँ तो मिले नही
    अपना आधार भी खोता है।

    प्रश्न वही इंसा क्यों नादाँ होता है?
    सचमें क्यों इतना विवश, क्यों इतना बेवश है इंसान
    अपनी सामर्थ्य से अधिक अपेक्षाएं पालता है....
    बहुत ही सटीक प्रश्न ...लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी मन खुश हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।

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  4. खुद को खोता, चैन गवाता
    मन के तम में भटका जाता
    समय की ठोकर खाता है,
    प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?

    एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर जानते सभी है पर मानते नहीं बहुत खूब,सादर नमन आपको कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
      सस्नेह

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