समय कीपदचाप।
समय की पदचाप
सुनी है किसी ने ?नहीं!
दिखती है बस पदछाप।
अपने विभिन्न रंगों में
जिसका न कोई माप।
कहीं नव निर्माण
कहीं संताप ।
सवंरती नई जिंदगियाँ कहीं
कहीं जैसे जीवन ही श्राप ।
बिखरे हैं कहीं बहारों के मेले
कहीं भयावह अगन और ताप।
कहीं क्रंदन,रुदन
कहीं सरगम के आलाप।
कहीं फहरती धर्म ध्वजा
और कहीं पाप ही पाप ।
कहीं रंगरेलियाँ
कहीं तप और जाप।।
फ़लसफ़ा जीवन का कैसा
गूँजती हर शै समय की मौन पदचाप।।
कुसुम कोठारी।
समय की पदचाप
सुनी है किसी ने ?नहीं!
दिखती है बस पदछाप।
अपने विभिन्न रंगों में
जिसका न कोई माप।
कहीं नव निर्माण
कहीं संताप ।
सवंरती नई जिंदगियाँ कहीं
कहीं जैसे जीवन ही श्राप ।
बिखरे हैं कहीं बहारों के मेले
कहीं भयावह अगन और ताप।
कहीं क्रंदन,रुदन
कहीं सरगम के आलाप।
कहीं फहरती धर्म ध्वजा
और कहीं पाप ही पाप ।
कहीं रंगरेलियाँ
कहीं तप और जाप।।
फ़लसफ़ा जीवन का कैसा
गूँजती हर शै समय की मौन पदचाप।।
कुसुम कोठारी।
वाह !! बेहतरीन अभिव्यक्ति कुसुम जी ,समय की पदचाप को तो सभी अनसुना ही करते हैं। सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसही कहा समय की पदचाप.....
ReplyDeleteसवंरती नई जिंदगियाँ कहीं
कहीं जैसे जीवन ही श्राप ।
बिखरे हैं कहीं बहारों के मेले
कहीं भयावह अगन और ताप।
अगर सुन लें तो शायद सम्भल भी जायें
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
सुधाजी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा लेखन को उर्जा मिलती है।
Deleteसादर आभार आपका ,मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन सखि
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
Deleteपदचाप और पदछाप शब्दों के प्रयोग से रचना में गहरे अर्थ भर दिए। प्रभावशाली रचना कुसुम जी।
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