रश्मियों की कलम से
रश्मियों की क़लम
नव प्रभात रच दूं,
मन झरोखा खोल कर
तमस से मुक्ति दूं।
रात के निरव को स्वर
मधुर मुखर कर दूं ,
चाँदनी की कलम से
अंधकार हर दूं।
पावन ऋचाएं रचूं
श्वासों में भर दूं,
वीणा मधुरम बजे
वही संगीत दूं।
करे सरस काव्य सृजन
कवि बन जा मन तूं,
कोमल भाव उकेरे
नव कविता रच तूं।।
कुसुम कोठारी।
रश्मियों की क़लम
नव प्रभात रच दूं,
मन झरोखा खोल कर
तमस से मुक्ति दूं।
रात के निरव को स्वर
मधुर मुखर कर दूं ,
चाँदनी की कलम से
अंधकार हर दूं।
पावन ऋचाएं रचूं
श्वासों में भर दूं,
वीणा मधुरम बजे
वही संगीत दूं।
करे सरस काव्य सृजन
कवि बन जा मन तूं,
कोमल भाव उकेरे
नव कविता रच तूं।।
कुसुम कोठारी।
यूँ ही रचनाओं पर रचनाएँ रचते जाइये।
ReplyDeleteबहोत खूब।
आइयेगा- प्रार्थना
बेहद खूबसूरत रचना सखी
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरात के निरव को स्वर
ReplyDeleteमधुर मुखर कर दूं ,
चाँदनी की कलम से
अंधकार हर दूं।
लाजबाब ,बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर
सुन्दर सृजन कुसुम जी
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