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Thursday, 13 February 2020

रश्मियों की क़लम

रश्मियों की कलम से

रश्मियों की क़लम
 नव प्रभात रच दूं,
 मन झरोखा खोल कर
 तमस से मुक्ति दूं।

रात के निरव को स्वर
मधुर मुखर कर दूं ,
चाँदनी की कलम से
अंधकार हर दूं।

 पावन ऋचाएं रचूं
 श्वासों में भर दूं,
 वीणा मधुरम बजे
 वही संगीत दूं।

करे सरस काव्य सृजन
कवि बन जा मन  तूं,
कोमल भाव उकेरे
  नव कविता रच तूं।।

          कुसुम कोठारी।

6 comments:

  1. यूँ ही रचनाओं पर रचनाएँ रचते जाइये।
    बहोत खूब।

    आइयेगा- प्रार्थना

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  2. बेहद खूबसूरत रचना सखी

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  3. प्रशंसनीय

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. रात के निरव को स्वर
    मधुर मुखर कर दूं ,
    चाँदनी की कलम से
    अंधकार हर दूं।

    लाजबाब ,बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर

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  6. सुन्दर सृजन कुसुम जी

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