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Tuesday, 4 February 2020

अद्वय आदित्य आचमन

लो चंदन महका और खुशबू उठी हवाओं में
कैसी सुषमा  निखरी  वन उपवन उद्धानों में

निकला उधर अंशुमाली  गति  देने जीवन में
निशांत का,संगीत ऊषा गुनगुना रही अंबर में

मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद में
महा अनुगूंज बन बिखर गई सारे नीलांबर में

वो देखो हेमांगी  पताका  लहराई क्षितिज में
पाखियों का कलरव फैला चहूं और भुवन में

कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में
विटप झुम  उठे  हवाओं के मधुर संगीत में

वागेश्वरी  स्वयं  नवल वीणा ले उतरी धरा में
कर लो गुनगान अद्वय आदित्य के आचमन में

लो फिर आई है सज दिवा नवेली के वेश में
करे  सत्कार जगायें  नव निर्माण विचारों में।

                 कुसुम कोठारी ।

7 comments:

  1. करे सत्कार जगायें नव निर्माण विचारों में..
    प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार को शब्दों में पिरोने के साथ ही विचारों को पवित्र बना उत्तम कर्म का भी आवाहन, बहुत सुंदर से सृजन दी..।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका भाई आपकी सराहना से मन प्रफुल्लित हुआ और उर्जा का संचार ।

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  2. सुंदर विचारों से सज्जित बहुत ही अच्छी रचना

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय अनु।
      उत्साह वर्धन करने के लिए।
      सस्नेह।

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  3. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
    आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  4. अद्भुत और मंत्रमुंग्ध करता शब्द सृजन ।

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(11-02-2020 ) को " "प्रेमदिवस नजदीक" "(चर्चा अंक - 3608) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।आप भी सादर आमंत्रित है
    ...
    कामिनी सिन्हा

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