लो चंदन महका और खुशबू उठी हवाओं में
कैसी सुषमा निखरी वन उपवन उद्धानों में
निकला उधर अंशुमाली गति देने जीवन में
निशांत का,संगीत ऊषा गुनगुना रही अंबर में
मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद में
महा अनुगूंज बन बिखर गई सारे नीलांबर में
वो देखो हेमांगी पताका लहराई क्षितिज में
पाखियों का कलरव फैला चहूं और भुवन में
कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में
विटप झुम उठे हवाओं के मधुर संगीत में
वागेश्वरी स्वयं नवल वीणा ले उतरी धरा में
कर लो गुनगान अद्वय आदित्य के आचमन में
लो फिर आई है सज दिवा नवेली के वेश में
करे सत्कार जगायें नव निर्माण विचारों में।
कुसुम कोठारी ।
कैसी सुषमा निखरी वन उपवन उद्धानों में
निकला उधर अंशुमाली गति देने जीवन में
निशांत का,संगीत ऊषा गुनगुना रही अंबर में
मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद में
महा अनुगूंज बन बिखर गई सारे नीलांबर में
वो देखो हेमांगी पताका लहराई क्षितिज में
पाखियों का कलरव फैला चहूं और भुवन में
कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में
विटप झुम उठे हवाओं के मधुर संगीत में
वागेश्वरी स्वयं नवल वीणा ले उतरी धरा में
कर लो गुनगान अद्वय आदित्य के आचमन में
लो फिर आई है सज दिवा नवेली के वेश में
करे सत्कार जगायें नव निर्माण विचारों में।
कुसुम कोठारी ।
करे सत्कार जगायें नव निर्माण विचारों में..
ReplyDeleteप्रकृति के अद्भुत श्रृंगार को शब्दों में पिरोने के साथ ही विचारों को पवित्र बना उत्तम कर्म का भी आवाहन, बहुत सुंदर से सृजन दी..।
बहुत बहुत आभार आपका भाई आपकी सराहना से मन प्रफुल्लित हुआ और उर्जा का संचार ।
Deleteसुंदर विचारों से सज्जित बहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रिय अनु।
Deleteउत्साह वर्धन करने के लिए।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
अद्भुत और मंत्रमुंग्ध करता शब्द सृजन ।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(11-02-2020 ) को " "प्रेमदिवस नजदीक" "(चर्चा अंक - 3608) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।आप भी सादर आमंत्रित है
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कामिनी सिन्हा