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Tuesday, 18 February 2020

सांझ सुनहली तुम बन जाओ

नवगीत मात्रा१६-१६

"साँझ सुनहली तुम बन जाओ
 मैं नभ का टुकड़ा बन जाऊँ"
सुरमई  चुनरी जब फहरे
मैं तारा बन  के टँग जाऊँ।

हरित धरा तुम सरसी सरसी
मैं अविरल सा अनुराग बनूं।
कल-कल बहती धारा है तू
मैं निर्झर उद्गम शैल बनूं ।
कभी घटा में कभी जटा में
मनहर तेरी ही छवि पाऊँ।।

साँझ सुनहली तुम बन जाओ
 मैं नभ का टुकड़ा बन जाऊँ।

महका-महका चंदन पीला
सिलबट्टे पर घिसता जाता।
तेरे भाल सजा जो घिसकर
हृदय तक आनंद पा जाता।
दीपक की ज्योति तू उज्जवल
मैं जलती बाती बन जाऊँ।।

साँझ सुनहली तुम बन जाओ
 मैं नभ का टुकड़ा बन जाऊँ।।

कुसुम कोठारी

5 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना, बधाई.

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  2. वाह!!कुसुम जी ,बेहतरीन सृजन !

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  3. वाह बेहद खूबसूरत रचना 👌👌

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  4. वाह आदरणीया दीदी जी कितना सुंदर कितना मनमोहक लिखा आपने। वाह्ह्ह... सादर प्रणाम 🙏
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  5. बहुत ही लाजवाब मनभावन नवगीत
    वाह!!!

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