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Friday, 14 February 2020

पराग और तितली

पराग और तितली

चहुँ ओर नव किसलय शोभित
बयार बसंती मन भाये
देख धरा का गात चम्पई
उर में राग औ मोह जगाये

ओ मतवारी चित्रपतंगः
तुम कितनी मन भावन हो
कैसा सुंदर रूप तुम्हारा
कैसा मोह जगाती हो ।

वन माली  करते हैं
फूलों की रखवाली
पर तुम कितनी चंचल हो
उनके वार भी जाए खाली।

आंखों से काजल के जैसे
ले लेती सौरभ सुमनों से
चहुँ ओर विलसे पराग दल
पुछे रमती ललिता से ।

थोड़ा-थोडा लेती हो
नही मानव सम लोभी तुम
संतोष धन से पूरित हो
पात-पात उड़ती हो तुम।

फूलों सी सुंदर तुम तित्तरी
फूल तुम्हें भरमाते
पर तेरा ये  सुंदर गात
इंद्रनील भरने रंग आते ।

प्रकृति बदले रूप अनेक
ये कुदरत की है सौगात
मधुर पराग रसपान करती
उडती रहती पात-पात।

  कुसुम कोठारी।

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०१-२०२०) को शब्द-सृजन-८ 'पराग' (चर्चा अंक-३६१२) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. सच लोभी केवल एक है वो है आदमी,
    बहुत सुंदर वर्णन प्रकृति का, तितली का.
    मनभावन.
    आइयेगा- प्रार्थना

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  3. थोड़ा-थोडा लेती हो
    नही मानव सम लोभी तुम
    संतोष धन से पूरित हो
    पात-पात उड़ती हो तुम

    बहुत ही सुंदर भावो से सजी रचना कुसुम जी ,सादर नमस्कार

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  4. मानव इतना लोभी है कि वह मधुमक्खियों के भोजन ( शहद ) पर भी डाका डालता है।

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  5. सुन्दर तितली पर खूबसूरत सजन....
    वाह!!!
    कमाल है कुसुम जी आप और आपकी लेखनी
    कोई भी विषय आपसे अछूता नहीं...।
    कोटिश नमन आपको और आपकी लेखनी को।

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  6. आंखों से काजल के जैसे
    ले लेती सौरभ सुमनों से
    चहुँ ओर विलसे पराग दल
    पूछे रमती ललिता से ।
    वाह !! अद्भुत और लाजवाब सृजनात्मकता ।

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  7. बहुत सुंदर रचना जो किसी वृत्तांत-सी प्रतीत होती है। हृदयग्राही सृजन में गहरे भाव उत्कृष्ट कलात्मकता के साथ उभरे हैं।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    सादर नमन आदरणीया दीदी।

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