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Thursday, 20 February 2020

रची थी हाथों में मेंहदी

रची हाथों में मेंहदी

 रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना
माथे ओढ़ी प्रीत चुनरिया
घूंघट भी था झीना झीना।

धीरे-धीरे से पाँव उठाती
चाल चली वो मध्धम-मध्धम
नैनों में काजल था श्यामल
सपने सजे थे उज्जव उज्जल
किससे कहे मन की वो बातें
लाज का पहरा झीना-झीना।

रची  थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।

भाल पर थी सिंन्दुरी बिंदी
बल खाके नथली भी ड़ोली
कगंन खनका खनन-खनन
धीरे-धीरे से  पायल  बोली ।
पैर महावर उठते थम-थम
प्रीत का रंग भी झीना झीना।

रची  थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।

पियाजी संग जब फेरे डाले
पलकें झुकी लाज में थोड़ी
गालों पर गुलाब की रंगत
चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
विदा होके डोली में बैठी
झरा आँख से मोती झीना-झीना।

रची  थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।

         कुसुम कोठारी।

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 21 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया।

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  2. पियाजी संग जब फेरे डाले
    पलकें झुकी लाज में थोड़ी
    गालों पर गुलाब की रंगत
    चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
    विदा होके डोली में बैठी
    झरा आँख से मोती झीना-झीना।
    रची थी हाथों में मेहंदी
    रंग बहुत ही भीना-भीना।

    अति सुंदर ,व्याह के गीतों सा सरस, मनभावन रचना ,सादर नमन कुसुम जी

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    1. बहुत सुंदर व्याख्या करती रचना के भावों पर सटीक टिप्पणी के लिए हृदय तल से आभार कामिनी जी।

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  3. पियाजी संग जब फेरे डाले
    पलकें झुकी लाज में थोड़ी
    गालों पर गुलाब की रंगत
    चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
    विदा होके डोली में बैठी
    झरा आँख से मोती झीना-झीना।
    बेहद खूबसूरत रचना 👌👌👌👌

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    1. मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला सखी सस्नेह आभार।

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  4. बहुत सुंदर सृजन
    बधाई

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      रचना को सार्थकता मिली।

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  5. विदा होके डोली में बैठी
    झरा आँख से मोती झीना-झीना।
    रची थी हाथों में मेहंदी
    रंग बहुत ही भीना-भीना।
    अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति👌👌👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिता है और मुझे खुशी।
      सस्नेह आभार।

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  6. बहुत बहुत आभार आपका । चर्चा पर आने की पुरी कोशिश रहती है मेरी देर सबेर आती जरूर हूं।
    पुनः आभार।
    सस्नेह।

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  7. भाव विभोर करती पंक्तियाँ 👏👏👏👏👏

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