रची हाथों में मेंहदी
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना
माथे ओढ़ी प्रीत चुनरिया
घूंघट भी था झीना झीना।
धीरे-धीरे से पाँव उठाती
चाल चली वो मध्धम-मध्धम
नैनों में काजल था श्यामल
सपने सजे थे उज्जव उज्जल
किससे कहे मन की वो बातें
लाज का पहरा झीना-झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
भाल पर थी सिंन्दुरी बिंदी
बल खाके नथली भी ड़ोली
कगंन खनका खनन-खनन
धीरे-धीरे से पायल बोली ।
पैर महावर उठते थम-थम
प्रीत का रंग भी झीना झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
पियाजी संग जब फेरे डाले
पलकें झुकी लाज में थोड़ी
गालों पर गुलाब की रंगत
चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
विदा होके डोली में बैठी
झरा आँख से मोती झीना-झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
कुसुम कोठारी।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना
माथे ओढ़ी प्रीत चुनरिया
घूंघट भी था झीना झीना।
धीरे-धीरे से पाँव उठाती
चाल चली वो मध्धम-मध्धम
नैनों में काजल था श्यामल
सपने सजे थे उज्जव उज्जल
किससे कहे मन की वो बातें
लाज का पहरा झीना-झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
भाल पर थी सिंन्दुरी बिंदी
बल खाके नथली भी ड़ोली
कगंन खनका खनन-खनन
धीरे-धीरे से पायल बोली ।
पैर महावर उठते थम-थम
प्रीत का रंग भी झीना झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
पियाजी संग जब फेरे डाले
पलकें झुकी लाज में थोड़ी
गालों पर गुलाब की रंगत
चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
विदा होके डोली में बैठी
झरा आँख से मोती झीना-झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
कुसुम कोठारी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 21 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीया।
Deleteपियाजी संग जब फेरे डाले
ReplyDeleteपलकें झुकी लाज में थोड़ी
गालों पर गुलाब की रंगत
चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
विदा होके डोली में बैठी
झरा आँख से मोती झीना-झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
अति सुंदर ,व्याह के गीतों सा सरस, मनभावन रचना ,सादर नमन कुसुम जी
बहुत सुंदर व्याख्या करती रचना के भावों पर सटीक टिप्पणी के लिए हृदय तल से आभार कामिनी जी।
Deleteपियाजी संग जब फेरे डाले
ReplyDeleteपलकें झुकी लाज में थोड़ी
गालों पर गुलाब की रंगत
चितवन भी हल्की सी मोड़ी।
विदा होके डोली में बैठी
झरा आँख से मोती झीना-झीना।
बेहद खूबसूरत रचना 👌👌👌👌
मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला सखी सस्नेह आभार।
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाई
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteरचना को सार्थकता मिली।
विदा होके डोली में बैठी
ReplyDeleteझरा आँख से मोती झीना-झीना।
रची थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।
अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति👌👌👌👌
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिता है और मुझे खुशी।
Deleteसस्नेह आभार।
बहुत बहुत आभार आपका । चर्चा पर आने की पुरी कोशिश रहती है मेरी देर सबेर आती जरूर हूं।
ReplyDeleteपुनः आभार।
सस्नेह।
भाव विभोर करती पंक्तियाँ 👏👏👏👏👏
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