आज दुष्कर है जीवन, औ प्राण भी।
क्षुब्ध मानव है विकल ,दो त्राण भी।।
चँहु ओर हाहाकार, कठिन जीवन
दग्ध है ज्वालामुखी ,जले ज्यों वन ।
धधकती इस आग का, निस्त्राण भी,
आज दुष्कर है जीवन, औ प्राण भी ।।
चित्कारती वेदना, भ्रमित अविचल,
सृजन में संहार है, हर एक पल ।
खण्डित आशा रोती, संत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
तिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
कस्तुरी खोजता मृग, है संतप्त ।
पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
कुसुम कोठारी।
क्षुब्ध मानव है विकल ,दो त्राण भी।।
चँहु ओर हाहाकार, कठिन जीवन
दग्ध है ज्वालामुखी ,जले ज्यों वन ।
धधकती इस आग का, निस्त्राण भी,
आज दुष्कर है जीवन, औ प्राण भी ।।
चित्कारती वेदना, भ्रमित अविचल,
सृजन में संहार है, हर एक पल ।
खण्डित आशा रोती, संत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
तिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
कस्तुरी खोजता मृग, है संतप्त ।
पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
कुसुम कोठारी।
वाह दी अप्रतिम बेहद सराहनीय सृजन..।
ReplyDeleteसमृद्ध और मोहक शब्दावली से सजी सुंदर भावपूर्ण रचना।
तिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
कस्तुरी खोजता मृग, है संतप्त ।
पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
ये बंध तो बस क़माल है।
आपकी शानदार प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थकता दी श्वेता ,आपको पसंद आई बहुत अच्छा लगा।
Deleteसदा स्नेह बनाए रखें।
अंतरात्मा की आवाज पर स्वार्थ के ठहाके का भारी पड़ना और फिर कलुषित हृदय से उत्पन्न विकार से जब तक हम मुक्त नहीं होंगे । संसार में ऐसा कोई ज्ञान -ध्यान और जप- तप नहीं है जो हमें इस कष्ट से मुक्ति दिला सके ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन सदैव की तरह कुसुम दी।
बहुत बहुत आभार आपका भाई , सुंदर बात कही आपने सटीक और सत्य ।आपकी विस्तृत टिप्पणी से लेखन को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह।
वर्तमान परिवेश की मीमांसा करती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति. मूल्यों के पतित होने और पुनर्स्थापन की त्वरित प्रक्रिया में हम स्वयं को कहाँ खड़ा पाते है, इस बिंदु पर सटीक चिंतन करती नज़र आती है छंदबद्ध रचना.
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएँ.
सादर नमन आदरणीया दीदी.
रचना की कुछ शब्दों में इतने सुंदर ढंग से व्याख्या की है आपने रचना का मूल्य बढ़ गया ।
Deleteसुंदर सार्थक और व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
बहुत सुंदर सृजन,कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
Deleteतिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
ReplyDeleteकस्तूरी खोजता मृग, है संतप्त ।
पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।
अप्रतिम सृजन ।
आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से लेखन सार्थक हो जाता है मीना जी । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।
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