Followers

Sunday, 16 February 2020

दो त्राण भी

आज दुष्कर है जीवन, औ प्राण भी।
क्षुब्ध मानव है विकल ,दो त्राण भी।।

चँहु ओर हाहाकार, कठिन जीवन
दग्ध है ज्वालामुखी ,जले ज्यों वन ।
धधकती इस आग का, निस्त्राण भी,
आज दुष्कर है जीवन, औ प्राण भी ।।
 
चित्कारती वेदना, भ्रमित अविचल,
सृजन में संहार है, हर एक पल ।
खण्डित आशा रोती, संत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।

तिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
कस्तुरी खोजता मृग, है संतप्त ।
पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।

               कुसुम कोठारी।

12 comments:

  1. वाह दी अप्रतिम बेहद सराहनीय सृजन..।
    समृद्ध और मोहक शब्दावली से सजी सुंदर भावपूर्ण रचना।
    तिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
    कस्तुरी खोजता मृग, है संतप्त ।
    पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
    आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
    ये बंध तो बस क़माल है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी शानदार प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थकता दी श्वेता ,आपको पसंद आई बहुत अच्छा लगा।
      सदा स्नेह बनाए रखें।

      Delete
  2. अंतरात्मा की आवाज पर स्वार्थ के ठहाके का भारी पड़ना और फिर कलुषित हृदय से उत्पन्न विकार से जब तक हम मुक्त नहीं होंगे । संसार में ऐसा कोई ज्ञान -ध्यान और जप- तप नहीं है जो हमें इस कष्ट से मुक्ति दिला सके ।
    बहुत ही सुंदर सृजन सदैव की तरह कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका भाई , सुंदर बात कही आपने सटीक और सत्य ।आपकी विस्तृत टिप्पणी से लेखन को प्रवाह मिला।
      सस्नेह।

      Delete
  3. वर्तमान परिवेश की मीमांसा करती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति. मूल्यों के पतित होने और पुनर्स्थापन की त्वरित प्रक्रिया में हम स्वयं को कहाँ खड़ा पाते है, इस बिंदु पर सटीक चिंतन करती नज़र आती है छंदबद्ध रचना.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    सादर नमन आदरणीया दीदी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना की कुछ शब्दों में इतने सुंदर ढंग से व्याख्या की है आपने रचना का मूल्य बढ़ गया ।
      सुंदर सार्थक और व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

      Delete
  4. बहुत सुंदर सृजन,कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।

      Delete
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

      Delete
  6. तिमिराछन्न परिवेश, तृषित अतृप्त ,
    कस्तूरी खोजता मृग, है संतप्त ।
    पुकारता टूटा मन ,नरत्राण भी ,
    आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।
    अप्रतिम सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से लेखन सार्थक हो जाता है मीना जी । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।

      Delete