Thursday, 6 February 2020

समय की पदचाप

समय कीपदचाप।

समय की पदचाप
सुनी है किसी ने ?नहीं!
दिखती है बस पदछाप।
अपने विभिन्न रंगों में
जिसका न कोई माप।
कहीं नव निर्माण
कहीं संताप ।
सवंरती नई जिंदगियाँ कहीं
कहीं जैसे जीवन ही श्राप ।
बिखरे हैं कहीं बहारों के मेले
कहीं भयावह अगन और ताप।
कहीं क्रंदन,रुदन
कहीं सरगम के आलाप।
कहीं फहरती धर्म ध्वजा
और कहीं पाप ही पाप ।
कहीं रंगरेलियाँ
कहीं तप और जाप।।
फ़लसफ़ा जीवन का कैसा
गूँजती हर शै समय की मौन पदचाप।।

कुसुम कोठारी।

8 comments:

  1. वाह !! बेहतरीन अभिव्यक्ति कुसुम जी ,समय की पदचाप को तो सभी अनसुना ही करते हैं। सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  2. सही कहा समय की पदचाप.....
    सवंरती नई जिंदगियाँ कहीं
    कहीं जैसे जीवन ही श्राप ।
    बिखरे हैं कहीं बहारों के मेले
    कहीं भयावह अगन और ताप।
    अगर सुन लें तो शायद सम्भल भी जायें
    बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. सुधाजी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा लेखन को उर्जा मिलती है।

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  3. सादर आभार आपका ,मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।

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  4. बेहतरीन सृजन सखि

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  5. पदचाप और पदछाप शब्दों के प्रयोग से रचना में गहरे अर्थ भर दिए। प्रभावशाली रचना कुसुम जी।

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