निशिगंधा की भीनी
मदहोश करती सौरभ
चांदनी का रेशमी
उजला वसन
आल्हादित करता
मायावी सा मौसम
फिर झील का अरविंद
उदास गमगीन क्यों
सूरज की चाहत
प्राणो का आस्वादन है
रात कितनी भी
मनभावन हो
कमल को सदा चाहत
भास्कर की लालिमा है
जैसे चांद को चकोर
तरसता हर पल
नीरज भी प्यासा बिन भानु
पानी के रह अंदर,
ये अपनी अपनी
प्यास है देखो
बिन शशि रात भी
उदास है देखो।
कुसुम कोठरी
बिटिया बहुत बहुत सुंदर ऐक मदद चाहिये आप कवि श्री ज्ञान भारिल्ल के बारे मे जानती है क्या ?
ReplyDeleteसाॅरी देर से देखा, नमस्कार काकासा । मै ज्यादा नही बस ईतना ही पता है कि राजस्थान साहित्य अकादमी ने उन्हें विशिष्ट साहित्यकार का सम्मान 72-73 मे दीया था और उन्होंने काफी उत्कृष्ट साहित्य सृजन किया।
ReplyDeleteये तो मैने भी पता लगा लिया और उनकी प्रमुख कृतियो का उल्लेख भी डॉक्टर मयंक जी शर्मा के शोध पत्र मे आया है ये सारी जानकारी अमित जी मौलिक के वाटसप पर भेजी है ।। आप तो नम्बर देती नही वर्णा सीधे आपको भेज देता ताकी उस से आगे खोजने मे साहयता मिलती
Deleteवाह्ह्ह...वाह्ह...दी हमेशा की भाँति...बेहद सुंदर रचना👌👌👌
ReplyDeleteशब्दों को चुन-चुनकर माला पिरोये है आपने।
स्नेह आभार श्वेता ।
Deleteबहुत सुन्दर मनभावन रचना....
ReplyDeleteकमल की चाहत भास्कर... चकोर को चाँद....
शशि बिन रात उदास...
वाह!!!!
सुधा जी आपकी ब्लॉग पर प्रतिक्रिया मन लुभा गई ।
Deleteवाह !!!बहुत खूबसूरत रचना.... सुंदर
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteसादर आभार।
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